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कर्मराजा भने धर्मराजानुं बुद्ध.
भटकाना कर्मछे एवी श्रद्धा करावी कर्म नाश करवा तरफ ते जीबोनी वृत्ति लधुंकुं. वळी हुं इगु-परमेश्वरनो दीकरोछे तेने से वो से तारशे इत्यादि भ्रमपाशमां फसाएला जीवोने विवेकचक्षु अपि सत्यं मोक्षमार्ग देखाडी आत्मतत्वनुं भान करावी शुद्ध बुद्धिश्री परमात्मपद प्राप्त करे तेम योजुछु, बळी हुं केटलाक जीवोने आत्मा क्षणिकछे. क्षणमां क्षणमां जुदो जुड़ो आत्मा उत्पन्न, थाय छे. एम माननारा जीवानुं मिथ्यात्व संहरी सत्यमति अप आत्मा क्षणिक नथी. आत्मरूप व्यक्तिनो नाश थतो नथी ज्ञेयना पलटवे ज्ञाननुं पलटraj थायछे तेथी आत्मामां थतो उत्पाद व्यय तेनी अपेक्षाए पर्यायार्थिक नयमते आत्मा अनित्यछे एम सम्यकवोध जीवने अनुं अमे द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाए आत्मा नित्यछे एम शुद्धबोध समर्षी भव्य जीवोने मुक्ति नगरी दु:माप्या प्राप्त कराखुंडं. वळी हुं केटलाक जीवो पित्व सुभटनो संग पामी पंचभूत विना व्यतिरिक्त आत्मा नभी एम. स्वीकारीछे तेवा जनोने शुद्ध श्रद्धा सद्गुरु संगे करावी आ त्मा पंचभूत थकी न्यारोछे सुख दुःख भोक्ताछे कर्मनो कर्ता एम सम्यक्त्व रत्न अर्षी मोक्ष मार्ग वाही करूंं. बळी जे जीवो नित्य एकांत आत्मतत्व मानी आत्माने कर्मबंध स्वीकारता नथी आत्माकर्मनो कर्त्ता नथी अने भोक्ता नथी इत्यादि वक्ताओने पण अपेक्षाए सत्य समजा कुंकुं कर्मनो कर्त्ता अने भोक्ता आत्माछे, आत्मा एकांत नित्य नवी एकांत नित्य वस्तु आत्मा जो होय तो पछी नाना विध शरीरमां वशनारा जीवो सुखी दुःखी अवस्थावाळा देखायचे ते केम बनी शके, माटे आत्मा एकांत नित्य नथी, जो एकांत नित्य आत्मा मानीए तो पछी शिर्षमुंडन व्रतारोप विगेरे पण शा कारणवी करवं जोइए. माटे आत्मा स्वव्यक्ति की नित्यछे अने
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