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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परमात्मदर्शन. ( २८९ ) · चावी कर्म प्रपंचथी दूर रहेवा वारंवार मनोद्वारा कहुंलुं जे जीवो संसारनी हवाथी दूर रहेछे अने संसारने वळता अनि समान गणेछे ते जीवोमां हूं वास करु अने ते जीवोने शाश्वतपद प्राप्त करवामां स्हायी बनुंछं. घणा जीवो मारी सहायथी मुक्तिनगरीमां गया जायछे अने जशे. माटे आप निश्चिंत रहो. त्यारबाद सकल धर्म सेनानो उपरी " सम्यकत्व सेनापति " धर्मराजाजीने नमन करि मधुरवाणीथी सभाजनने आश्चर्य पमाडतो कहेवा लाग्यो के हे धर्मराजाजी आपनी सेनानो हुं उपरीधुं मारो वास सकळ भव्यात्माओमांछे. मारा बिना कर्मना राजा योद्धाओ रणभूमिमांथी पाछा हठता नयी, सकळकर्म सैन्यनो हुं नाश करुंकुं. जे आत्मामां हुं उत्पन्न था त्यांची मिथ्यात योद्धो नाशी जायछे पछी भव्यात्मा सरळताए गमन करतो छतो मुक्ति नगरीबां पहोचेछे. मिथ्याखनो नाश करवो एज मारुं मुख्य कामछे, जे जीवो मिध्यात्वना जोरे दुनीया परमेश्वरे बनावीछे, पाछो प्रलयकालमां दुनीयानो नाश थायछे परमेश्वर जीवोने सुख दुःख आपेछे एम मानी चारगतिमां भटकनारा जीवोने सुखदुःख आपेछे ते जीवोनो ढुं उद्धार करुन्छु. हुं ते जीवोमां वास करी तेमनी सारी बुद्धि करुंकुं परमेश्वर जगत्नो वनावनार नथी, जगत् अनादिकाळथीछे जीवो सर्व परमात्मा सदृशछे, कर्मना योगे जुदी जुदी गतिमां भमेछे जीवोने कर्म अनादिकाळथी लाग्छे. जीवो अनंतछे अनादिकाळथीछे कर्म नाश थतां जीवनी मुक्ति थायछे.. आ. प्रमाणे जीवोनी सारी बुद्धि करी मिथ्याखनो संग दूर करावी मोक्षनगरी तरफ गमन कराकुंकुं. केटलाक जीवो मिथ्यात योद्धाना संसर्गे ब्रह्म ब्रह्म स्वीकारी अन्यने माया तरीके कल्पी भवब्रह्मांडम भटके छे. सेमने हुं शुद्धश्रद्धा अर्पि आत्महितार्थे आत्मा अने तेने .. • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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