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( २८८ )
कर्मराजा भने धर्मराजानु युद्ध.
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मारी शक्ति प्रगट थतां मोहादि शत्रुओ नाश पामेछे. जीवने क्षपक श्रेणि उपर हुं चढाएं. क्षपकश्रेणि चढतां कर्मशत्रुनो नाश थायछे. मोक्षपुरीमां पण प्रत्येक आत्मानी साधे भिन्नाभिन्न स्वरूपे हुं व मुंलुं. माराथी दरेक आत्माओ स्वपरने जाणी शकेछे मारो नाश कोइथी थतो नथी. माटे हे धर्मराजाजी आप जरामात्र चिंता करशो नहि. आवां उपयोग मंत्रीनां वचनो सांभळी धर्मराजा खुशी थयो, त्यारे धर्मराजानी माता दया सभा समक्ष बोलवा लागी के हुं ज्यां सुधी विद्यमानछु. त्यां सुधी कोइनुं कंड चालनार नथी. हुं सर्व जीवोमां प्रथम वासकरुं हुं ज्यां छं त्यां तारी हयातीछे. द्रव्य अने भावथी मारु वे प्रकारे बस थायछे. दया, धर्मनी माता जगत्मां कहेवायछे.. तुं मारो पुत्रछे हुं ज्यां छं त्यां त्हारी हयाती कहेवायछे, माराथी हिंसा विगेरे कर्म राजानो परिवार दूर नाशेछे, सर्व प्राणीयोमां थाडी घणी स्थीति करूं, अने मोक्षपुरी जीवो न पमाडुलुं, माटे हे पुत्र सुखेथी राज्यधुरा धारणकरो. इत्यादि दयाना वचनो श्रवण करी धर्मराजाना मनमां धैर्य स्फुर्यु. तेवामां धैर्य पिता धर्म पुत्र उपर स्नेहदृष्टि वर्षावतां वचनामृतो वरसाद वरसाववा लाग्यो हे धर्मपुत्र धैर्यथी तारी उत्पत्ति छतां तमे केम अधीरा बनोछो. कर्मशत्रुओ साथ हूं हिंमतथी ast जीवने क्षपकश्रेणि प्राप्त करावी आपुंछु. हे धर्म तारा सुभटोने धैर्य आपुंछु अने रणसंग्राममां कर्मनो पराजय करूंछु, कर्मराजानी साये युद्ध थायछे, अने तेना नगरमांथी अनेक जीवोने मुक्तिनगरीमा लेइ जए छीए. माटे धैर्य धारण करो. त्यारबाद शांति स्त्री पोताना स्वामी धर्मराजाने नम्रतापूर्वक विनयथी कहेवा लागी के - हे स्वामिनाथ आप चिंता केम करोछो, मारो हूं धर्म सदाकाल बजाबुंलुं हुं सर्व जोवोने मोक्ष नगरी तरफ खेचुछु. सर्व जीव कर्मना अधीनं थया तोपण मारी संगत करवा चाहेछे. हुं तेमने शांति मेळवावा लल
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