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परमात्मदर्शन.
(१८) कर्मराजाना सुभटो जीवोने एवातो सपडावेछे के-भाग्ये जावो मारा नगरमां आवी शके-सर्व जीवोमा कर्मराजाना सुभटो व्यापी रह्याछे. कर्म सुभटोए संसारी जीवोने एवी रीते अंध कर्याछे केते जीवो मुक्तिनगरीमा आववा इच्छा पण करता नथी. अरे हवे केम करवू. आम धर्मराजा उंडो विचार करी चिंता करेछे. ____ त्यारे उपयोगमंत्रीए इंगिताकारथी जाणीने पूच्छयु के-हे प्रभो आज आप मोटी चिंतामां पडया होय तेम देखाओछो. ते चिंता शीछे ते कृपा करीने कहो
एम उपयोग मंत्रीनी प्रार्थनाथी धर्म नृपतिए सर्व हकीकत कही संभळावी
त्यारे उपयोग मंत्री बोल्यो के-हे प्रभो मारा छतां आपने चिंता करवी घटे नहि. विवेकसभा भरावी धर्मराजा निस्पृह सिंहासन उपर विराजमान थया. मुख्य उद्देशथी धर्म राजाए वातचर्ची अने कयु के-हे सुभटो तमो आळसु थइ केम बेशी रह्याछो. कर्म राजाना सुभटो सर्व जीवोने भमावीचारगतिमा परिभ्रमण करावेछे. सत्यमोक्षमार्गनी समजण पडवा देता नथी. तमो मारा खरा सुभटो होय तो कर्मराजानो नाश करी भव्यजीवोने मुक्तिपुरीमा लेइ जाओ.
आ मारी सभा समक्ष हितशिक्षाछे. आवां नीतियुक्त मिष्ट वचनामृतनुं श्रवण करी धर्मराजानो अनादिकाळनो उपयोग मंत्री गंभीर वाणीथी सभा समक्ष कहेवा लाग्या के
हे धर्मनृपति, हुं निरंतर आपनी सेवामां हाजरछ. ज्यां आप धर्मराजा त्यां हुं उपयोग अवश्य. __ आपनो सर्व कारभार हुं करुंछ. माटे कहेवायछे के-उपयोगे धर्म-उपयोगविना आप धर्मनृपति नथी. एम अनुवाद प्रसिद्धछे. हुं आविर्भावे तथा तिरोभावे आपनी साथे सदाकाळ जीवोमां वसुंछं.
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