________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१८६) कर्मराजा भने धर्मराजानुं युद्ध. कपाकुंछु सामासामी वेर कराकुंछु, माता, पुत्र, स्त्री विगेरनो निकट संबंध करावी आफ्नार हुंछ संसारी जीवोने उपरना गुणठाणे - उवा देतो नथी. संसाररुपी वृक्षतुं बीज हुंछु. हुं अनादिकाळथी संसारमा वसुंछु. कोइपण काळे संसारमाथी मारु रहेठाण दूर थवान नथी. आ प्रमाणे कषाय सुभटनां वचन सांभळी कर्मराजा खुशी धयो. त्यारे योग नामनो सुभट बोल्यो के मारुं पराक्रम कोण नथी माणतुं. हुं सर्व जीवोने पाप बंधावी चोराशी लाख जीवयोनिमां भटकावुछ हुं सूक्ष्म रीते दरेक जीवोने व्यापीने रहूंछ आत्मानी परमात्मादशा थतां विखूटो पहुंछ, माटे हे कर्मराजाजी तमो जरा मात्र पण भय पामशो नहि. इत्यादि सुभटोनू बोलवू सांभळी कर्मराजाने जुस्सो चढयो. हिंमत आवी.
सर्व सुभटोने कर्म राजाए हुकम कर्यो के तमो हवे सर्व संसारी जीवोने वशमां राखो के जेथी धर्मराजाना सुभटोनुं कंइ पण चाली शके नहि. अने सर्व जीवोमां व्यापी संसारी जीवोने धर्म करतां अटकावो..
आवां कर्मराजानां वचन सांभळी सर्व सुभटो जुस्साभेर पोत पोतानुं कार्य बजावतुं तत्पर थया. हवे आ वखते धर्म शुं करेछे ते कीचे मजबः
धर्मराजा विवेकसभा, दयामाता, धैर्यपिता, शांतिस्त्री, उपयोगमंत्री, समकितसेनापति, क्षमापुत्री, ब्रह्मचर्यपुत्र, क्षमादिधर्मनृपतिनासुभटो, मुक्तिनगरी.
एकदीवस धर्मराजा विचार करेछे के-अहो हुं सर्व जीवोने सक्तिनगरीमां क्यारे लेइ जइश. अनादिकाळथी हुं संसारी जीवोने मुक्तिपुरीमा लेइ जाउंछु, तोपण अद्यापि पर्यंत पार आवतो नथी.
For Private And Personal Use Only