________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- परमात्मदर्शन
( २९१
पर्यावना पलटवे करी अनित्यछे नित्य अने अनित्य एवे धर्मवाळ आत्माछे. तेने कर्म लागेछे कर्मपण मिथ्यात्व अविरति कषायोगे करी लागेछे ए कर्मनो नाश थतां आत्मा परमात्मपद प्राप्त करेछे ए आदि शुद्धज्ञान अप साध्य-मुक्तिपदार्थे जीवोने मेरुतुं. अने स्वस्वरूप प्राप्त करा केटलाक जीवो स्त्री पुत्र धन आदियी पोताने सुखी मानेछे ते जीवोनी दृश्य क्षणिक पदार्थोमांत्री सुखनी बुद्धि दूर करी अदृश्य आत्मस्वमांज सुखछे एम शुद्धबोध देइ आ क्षणिक पदार्थोमां मिथ्या भ्रथतो दूर कराकुंकुं अने कामक्रोध लोभ भय हास्य शोक विगेरेथी जीवोने पृथक् करी स्वस्वरूपे निष्ठा कराकुंछु.
अहिani हितबुद्धि अने हितमां अहित बुद्धिरूप जे मिध्याइ न तेनो हुं नाश करुं दरेक जीवोने हुं सम्यक्ज्ञान अर्पुछे एम अनंता जो भूतकाले मुक्ति प्रति लक्ष दो अने वर्तमानकाळे लक्ष दो अने भविष्यकाळे दोरीश हूं दरेक जीवव्यक्तिमा ब मिथ्यात्व सैन्य माराथी नाभाग करे. जेम सूर्यनो उदय धतां अंधकारनो नाश था छे अने ते अंधकार क्यों गयो ! तेनी जेम मालूम पडती नयी तेन सूर्यसम मारा प्रकाशथी मिध्यात्व भागी जापछे हुं भव्य जीवोपां सदा वमुंलुं सम्यक्त्व बिना कोई माणस मुक्ति पामी शकतो नयी कर्मराजानुं सैन्य मारायी दूर नासेछे माटे हे धर्मराजाजी ! तमो मुखेथी निश्चिंत रहो आ प्रमाणे सम्यक्त्वं सेनापति वद्या बाद धर्मराजानी क्षमा नापनी पुत्री सविनय पिताजीने नमन करी मधुर भाषाए कहेवा लागी केहे धर्मपिताजी एक आपनी नानी पुत्रीलुं आपनी पवित्र सेवा हुं दरेक आत्माओमा स्थिति करती बजाबुंलुं हुं अनादिकाळथी भव्य जीवोमा ब
·
•
For Private And Personal Use Only