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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमामार्शन. (२७७ ) नछे के अविरति नामना आपणा योद्धाने थरथरावेछे. आपणा नगरनो भंग करनार श्री चोवीस तीर्थकरो तथा तेमनाथी उत्पन्न थयेला १साधु २साध्वी ३श्रावक ४श्रावीका रूप चतुर्विध संघ आप्रणाथी छुटी पड़ी धर्म राजाना नगरमां जवा उपडयोछे. तीर्थकरना भक्तो, साधु महाराजाओ, आपणा संसार नगरमा रहेनार संसारी जीवोने एवातो उपदेश आपेछे के-ते उपदेश, सांभळ्या पछी आपणा नगरमां ते जीवो रहेता नथी, अने संसारने ते स्मशान सरखो गणेछे, आपणी मायाना अने कुटुंब परिवारने बंधन समान गणेछे, मायाना पास रोडी वैराग्य रूप बख्तर धारण करी संसारनो त्याग करेछे, अनादिकाळथी आ प्रमाणे आपणा नंगरमाथी जीवो मोक्ष नगरमा चाल्या जायछे. ते जोइ मने अत्यंत चिंता थायछे. धर्म राजानुं मोक्ष नगर आपणा संसार नगर करता · नानुछे ते चौद राज लोकने अंते आवेलुंछे ते नगरमा रहेनारा जीवो अत्यंत सुखी होयछे मोक्ष नगरीमां गयेला जीवोनो आपणाथी कशो भय रहेतो नथी. __मोक्ष नगरमां गया जीवो पाछा आपणा नगरमां आवी शकता. नथी-आपणुं तेमना उपर कशुं जोर चालतुं नथी. अरे मारी नगरीनी खराब अवस्था थइ गइ ! तमो आटला बधा सुभटो छवां मारी. आवी दशा थई, हवे मारे शुं करवु,कोनी आगळ जइ पोकार करवोः आ प्रमाणे कर्म राजानां वचनो सांभळी मोह प्रधान आस्वासमा आपेछे. हे कर्म राजा तमो केम चिंता करोछो, कर्म राजाजी तमारं नगर कदी खाली थइ शकवानुं नथी. अनादिकाळथी तमारी एवी सत्ता बेठेलीछे के प्रायः कोइक जीव मोक्ष नगरीमा जइ शके, आपनो हुं प्रधान तथा अज्ञान नामनो. पुत्र, एटली तो संसारी जीवो For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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