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परमात्मदर्शन,
उद्यमयी कयुं कार्य सिद्ध थतुं नथी ? अलबत उग्रमयी सर्व कार्ड सिद्ध थाय ते. हवे ते कर्म संबंधी विशेष विवेचन करीए छीए.
१ कर्मराना २ कर्मराजानो मधान मोह ३ संसारनगर ४ कर्मराजानो पुत्र अज्ञान
५ कर्मराजानी पुत्री निंदा कर्मराजाना सुभटो-मिथ्यात्व, अविरति, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, कलह, भय, अभ्याख्यान, अशुभयोग, आर्तध्यान, रौद्रध्यान, इया विगेरे कर्मनुं कार्य ए छे के दरेक सं. सारी जीवो उपर सत्ता चलाववी. हवे एक दीवस कर्मराजा पोते. संसारनगर तरफ ध्यान आपी जुएछे के संसारी जीवो हाल केवी. हालतमा छे अने ते आपणी आज्ञामा छे के नहीं ? जोतां जोता. कर्मराजाने मालुम पडओँ के, अरे हाय वीतरागना भक्तो तथा तेमनी वाणीरूप आगमोथी घणा जीवोए मारु स्वरूप जाणी लीधुं. अने ते जीवो मने ते शत्रु तरीके लेखवी मारी नगरीमाथी नीकळबानो उपाय श्रीवीतरागना भक्तोने पुछेछे अने मोक्ष नगरी के में धर्मराजानी राजधानी त्यां जवा इच्छेछे. केटलाके मोक्ष नगरी तरफ जवा सारु प्रयाण शरु कर्युछे. अरे मारा नगरमाथी जीवों के.टलाक काळे सर्वे जता रहे शे. वे.म करु, एम उंडा विचारमा गुम थइ बेठो छे. त्यारे तेनी पासे मोहप्रधान आवीं पूछछे के, हे कर्मराजा तमे वेम उदास थइ बेठा छो ? मारा जेबो प्रधान छता तमने शी मोटी चिंता आवी पडीछे ते कृपा करीने कहो.
कर्मनृपतिभाषण कर्मराजा मोहमधानने कहेछे के, अरे हवे मारा राज्यमार्थी
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