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A ) कर्मराजा अने धर्मराजानु युद्ध. कमोहनीस अने ज्ञानावरणीय कर्मन स्वरूप तथा तेना नाशकी मात्मणोनो लाभ देखाडी हवे प्रस्तुत कर्मविषयज वर्णन कर मामा आबेले. कर्म संबंधी सामान्य वर्णन कर्यु. कर्म जडछे अने से आत्माना गुणोनो घातकर्ता छे. सर्व जीव कर्मासक्त छे. कर्मनो माया कस्को एज कर्तव्य छे. कर्मनुं स्वरुप समज्या विना कर्मनो नाश थतो नथी. श्रीवीरप्रभुए घोर परिसह सहन करी कर्मनो क्षय कर्यो... तो तेमनी वाणीना आधारे आपणे पण ज्ञान दर्शन चारि मनुं माराधन कर, लक्ष्यमा राखq. मोक्ष मार्ग विकट छे. प्रमाद कुपो, उपयोग अल्प, आयुष्य अल्प, दुःषमसमय, सत्समागम अल्प, धर्म साधनो अल्प, कर्मसाधनो विशेष, अहो के.वी दुर्दशा, क. मनुं जोर विशेष, धर्मध्याननुं जोर अल्प. आ शुं थयु, शुं करवू. हे बीरमा तारी वाणीनुं शरण, जगत्मां तमारो केटलो उपकार ! तारो आधार, तारो विश्वास. कर्पनी दुःखप्रदविचित्रमकृतियोनो नाश करखा केवा प्रकारचें लक्ष्य जोइए ? अधमता अने प्रमादयी जीवो क्याथी स्वस्वरूप पामे ? धर्म उद्यम अल्प छे. कर्मोपार्जन उद्यम अहर्निश चाल्या करेछे. तपासोतो खरा ! रागनुं जोर तमाग्रमा विशेष छे वा वैराग्यनु, जोर विशेष छे, कर्मनी कठीन ग्रंथीनो भेद आत्मार्थी पुरुष पुरुषार्थथो करेछे. कर्मनुं क्षेत्र चतुर्दश रज्वात्मक प्रमाण छ, अर्थात् कर्मनी राजधानी चउद राजलोकमां छे. तो पण कर्मथी डरवातुं नथी. कर्म नाश थवानुं नथी एम स्वममा. पण विचार, नहि, कारणके तेम मानी बेसवाथी उलटुं कर्मनीज दि थापछे. मारायी राग छूटवानो नथी वा मारा कर्ममा लख्यु हशे ते प्रमाणे थशे. एम प्रमादनी वृद्धि अर्थे वा सरागदशानी वृद्धि अर्थे वचन वदशो नहि. अनुयमनां वचनो जे बोलवामां आवेछे ते चावित्र मोहची आदिना उदयथी समजकुं. जरा सूक्ष्मदृष्टिथी, विचारो के
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