SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. ( २०२१ ठाणे ना क्षय थायछे. ज्ञानप्ररूपणा नंदिमूत्रमां हेतु न्याय पूर्वक दर्शावीछे. माटे आत्मार्थि जीवोए त्यांथी विशेष अधिकार समजवो अहाज्ञाननी केवी शक्ति ! ! ! चक्षुद्वारा देखेला पदार्थोनो मनमां केवो विचार थायले. बीजानामनना विचार पण ज्ञानथी जाणी शकाय छे. ज्ञाननी एकनी एकथी बीजा जीवमां विशेषता देखवामां आवे छे. केवलज्ञानमां सर्वज्ञाननो समावेश थायछे. संप्रतिकाळे ज्ञाननी क्षीणताछे. अने तेथी मतभेद वणा थया अने थशे जेम ज्ञाननी अल्पता नेम मतमतांतर विशेष अने ज्ञाननी वृधि तेम मतमतांतर अल्प जाणवतं. मतभेदना कदाग्रह विना जे जे वांचवं. सांभळवु. मनन कर ते सफळछे. क्षयोपशमभावे अधुना मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान समकिती जी - बोने वर्तेले, एम कथवं अनुभवगम्य सप्रमाणछे, मति अज्ञानी अने श्रुत अज्ञानी जीवो आ क्षेत्रमां विशेषछे मति अने श्रुत ज्ञानी जीवो अल्प अने तेमां पण विरति पाम्या जीवो अल्प अनुभवगम्य सिद्धांतानुसारछे. हे भव्य मति ज्ञान अने श्रुतज्ञाननो गहन विषयछे. अल्पज्ञपणाथी सूक्ष्म तत्त्वरूवरूप निगोद स्वरूप समजी शकाय नहीं तो मां ज्ञानावरणीय कर्मनो दोष समज. ग्रंथकर्त्ताने दोष आपीश नहीं सूक्ष्म तीक्ष्ण मति ज्ञान विना सूक्ष्म वातनो बोध यतो नथी. एम कहे सप्रमाणछे. केवलज्ञान अने केवल दर्शनथी जे पदार्थ स्वरूप जाणवा देखवामां आवे तेनुं स्वरूप मतिज्ञानथी यथार्थ साक्षात् कदी जाणी शकाय नहि. एम अनुभवयी ज्ञानीओ कथेछे. माटे शंका मनमां लावीश नहिं. जिन प्रवचनपर आस्था राख. जिनेश्वरे जे वचनो कथ्याछे ने अन्यथा नथी. एम श्रद्धा कर. अने आत्मानुभव सद्गुरुद्वारा कर के जेथी मुक्तिमार्गनो अधिकारी थाय. पूर्वा For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy