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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७० ) सूत्रोना आशय. सूत्रमा कोइ वचन तो उत्सर्ग मार्गनां छे. कोइ वचन अपवाद मार्ग बोधक. कोइ भय वचनछे. कोइक तो व्यवहार मार्गने बोधेछे. कोइक तो निश्चयनय मार्गने बोधेछे. एत्रो सूत्र सिद्धांतरूपी श्रुत सागरनो सार - महाश्रुतज्ञानी विना कोण पामी शके. अलबत ज्ञानी पामी शके.- कहछे के गाथासूत्र. विहिउज्जम वन्नय भय, नसग्ग ववाय तदुभय गयाई; सुत्ताई बहुविदाई, समई गंभीर भावाई ॥ १ ॥ एसिं विसयविभागं, अमुणंतो नाण चरणकम्मुदया, मुझइ जीवोतत्तो, सपरसि मसग्गदं कुणइ ॥ २ ॥ जैनसूत्रो उत्सर्ग अपवादथी परिपूर्ण सदाकालं विजयवंत वर्तेछे. सप्तनयोतुं यथार्थ स्वरूप जाण्या विना धर्मोपदेश सम्यग् रीत्या देह शकतो नथी. वेटलांक सूत्रो उद्यमकथकछे, माटे अपेक्षा समज्या विना प्ररूपणा करवी नहि. भाग्यवंत जीवोए गीतार्थनुं शरण अंगी - कार कर योग्यछे. दुःषम समयछे. माटे गीतार्थद्वारा अनेकांत मार्ग समजवो. श्रुतज्ञानिनी तथा श्रुतज्ञाननी आशातना करवायी नरकादि गतिमां घणा जीवो गया अने घणा जंशे. णमो वंभलीवीए. आ सूत्रो सम्यग् अर्थ गुरु परंपरया के.वी रीते थायछे. अने मां श्रुतज्ञाननो विनय बहुमान भक्तिनुं केटलं रहस्य समायुंछे. हवे dai कुतर्कनी स्वच्छंदताए विपरीत अर्थ करवामां केटली विरुद्धता वर्तेछे. ते विद्वज्जनो माध्यस्थदृष्टिथी विचार करशे तो समजाशे. श्री यशोविजयजी उपाध्याय पोताना रचेला स्तवनमां सप्रमाण अनुभव सहित शुद्ध व्याकरण दोषरहित सम्यग् अर्थ दर्शावे छे. तेनी For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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