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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. ( २६९ ) भणीने स्मरणमां राखेछे. कोइ एक कलाकमां पांच श्लोक भणेछे. कोइ पच्चीश श्लोक कोइ शतश्लोक कोइ सहस्रश्लोक एक कलाकमां याद करेछे कोइ आखा दीवसनो एक श्लोक पण याद करी शकतो नथी. त्यां श्रुतज्ञानावरणीयकर्मनी क्षयोपशमताज कारणीभूतछे. हालना समयमा कोइ शतावधानी कोइ द्विशतावधानी देखवामां आवे छे. तेनुं पण कारण मति अने श्रुतज्ञानावरणीय कर्मनी क्षयोपशमarat विचित्रताछे. अने ते प्रमाणे मगजनी रचना ज्ञानतंतुनी मबलता अने अप्रबलतानी तारतम्यताए घटना थायछे. अने ते प्रमाणे द्रव्य क्षेत्र काळभावथी प्रवल अमवल साधनोनी प्राप्ति थाय छे. श्रुतज्ञाना अभ्यासथी तथा श्रुतज्ञानीनो विनय भक्ति बहुमान करवाथी श्रुतज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम थायछे. श्रुत अने श्रुतज्ञानीनी आशातना करवाथी तथा उत्सूत्रभाषण करवाथी श्रुतज्ञाना - वरणीय कर्मनो बंध थायछे. माटे भव्य जीवोए क्रोध लोभ मान पूजा स्वार्थादिक आवेशथी उत्सूत्र भाषण करवुं नहीं. उत्सूत्र भाषणथी जमाली तथा मरीचिनी पेठे भवपरंपरानी प्राप्ति थाय छे. अल्पज्ञानयोगे उत्सूत्र भाषण थयुं होय तो ज्ञान थतां मिथ्या दुष्कृत देवु. पण मान पूजा लज्जादिकथी मिश्रयादुष्कृत देतां प्रमाद करवो नहि. भवभीरु भाग्यवंत जीव अनेकांत पंथने समजी प्राणांते पण मिथ्याप्ररूपणा करतो नथी. उत्सूत्र भाषण समान कोइ पाप नथी. माटे कदी अल्पज्ञपणाथी उत्सूत्र प्ररूपणा करवी नहि, कलियुगमां सूत्रोनी प्ररूपणामां गुरुगम विरह, मान, पूजा, स्वार्थ, मतांधपणाथी, उत्सूत्रभाषण करी अज्ञानी जीवा अनेक प्रकारना मत उठावेछे अने कुमति कुश्रुतयोगे कुतर्क करी भिन्न भिन्न पंथनी काळी दृष्टि रागी जीवोने समजावीने वीरप्रभुनां सत्य वचननो लोप करी आत्माना अजाण - पणाथी भवपरंपरानी वृद्धि करी जन्मजरा मरणनां दुःख विविध योनिमां अवतार ग्रही भोगववा प्रयत्न करेछे. For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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