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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २६८ ) षड्द्रव्य, सातनय, सप्तभंगी, प्रमाण निक्षेपतुं यथातथ्य स्वरूप ज्ञान विना समजातुं नथी. ज्ञान विना धर्म अधर्मतुं स्वरूप जणातुं नयी. ज्ञान घिना चारित्र शुं छे तेनुं पण भान थतुं नथी. ज्ञान, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मति ज्ञानावरणीय अने श्रुत ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम सर्व जीवोमांसरखो लागतो नथी. कोइएक वस्तुनुं स्वरूप विशेष समजेछे कोइ समजतुं नथी. त्यां मति ज्ञानावरणीयकर्मनी क्षयोपशमताज कारणीभूतछे. पूर्वभवमां जे प्रकारे मतिज्ञान अने श्रुत ज्ञाननुं आराधन कर्तुं होयछे. ते प्रमाणे आ भवमां मनुष्य जन्म पामी शरीरनी रचना, मगजनी रचना ज्ञानतंतुनी प्रबलता आदि सामग्रीसाधन मतिज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमभावमां प्राप्त धायछे अने ते साधनोद्वारा उद्यम करवाथी मतिज्ञाननी वृद्धि थायछे. मतिज्ञानना अष्टाविंशति अने ३४० त्रणसो चालीश भेद नंदिसूत्रमां मरुप्याछे. ज्ञाननी ब्राह्मी लीपी जे श्रुतज्ञान अक्षरस्वरूपेछे तेनी आशातना करवाथी ज्ञानावरणीय कर्म बंधायछे. आशातनाना हजारो भेद छे. ते गीतार्थने विनयथी पूछी समजण लेवी. सुवर्णना प्यालामां जलनां जेटलां बिंदु पडेछे तेलां कायम रहेछे. तेम योग्य संस्कारी जीव जेटलुं गुरुद्वारा श्रुतज्ञान मेळवेछे तेटलं तेने शुद्धरूपे परिणमेछे अने तेनुं स्मरण रहेछे. जेम तपात्रेला लोहना गोळा उपर जलबिंदु त्रण चार दश बार पडे तो कंइ तेनुं जोर चालतुं नथी तेम मूढ अज्ञानी जीवना हृदयमां सद्गुरु वचनामृतनो वास थतो नथी उलटो तेनो नाश थाय छे. एक शिक्षक शिष्योने एकज वखते सरखी रीते कोइ विषयनो बोध आपेछे तेमां कोइ विद्यार्थिने तो बिलकुल तेनी यादी रहेती नथी. कोइ ने यत् किंचित् रहेछे. कोइने पूर्ण यादी रहेछे त्यां श्रुत ज्ञानावरणीय कर्मनी क्षयोपशमताज कारणीभूतछे, कोइ एक श्लोक For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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