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परमात्मदर्शन. प्रदेशी-कुंथुओमा अने हस्तिमां शीरीते समपरिणामी जीव होय?
शी रीते ते साचुं मानवू, लघु स्थानमा लघु वस्तु अव. स्थान युक्त छे, मोटी वस्तुनुं मोटा स्थानमा अवस्थान युक्तछे केशी-हे आयुष्मन्-प्रदीप प्रभानो दृष्टांत अत्र जण, दीपक मोटी
शाळामां मूक्यो छतां तेंटली सर्व शाळाने तेनो प्रकाश व्यापीने रहे छे, तेम-कुंभमा मूक्यो छतां ते कुंभनो ज उद्योत करेछे, तेम आत्मा जेवडा शरीरने अवगाही रह्यो होय छे तेटला शरीरनेज चेतना गुणवडे द्योतन करे छे त्यां जरा पण
शंसय नथी. इति. प्रदेशी-हे भगवन् आपे अनादि कालथी लागेली एवी मिथ्याटेव मारी आज टाळी आपना सज्ञानरूप सूर्यथी मिथ्यात्व अंधकार दूर टळ्यु. हे भगवन् मारो उद्धार करनार आप छो, इत्यादि स्तुति करी वन ग्रही पोताना घेर गयो. बीजा दिवसे अत्यंत आडंबर सहीत भाव अभयदानरूप समकित दाता गुरूने वंदन कयु, विशेष अधिकार रायपसेगी सूत्रमा छे. श्री महावीर प्रभुए श्रेणिकरामाने भाव अभयदान अप्यु, श्री नेमिनाथमभुए श्री कृष्णमहाराजने भाव अभयदान अर्यु, तेना जेवो अन्य कोइ जगत्मा उपकार नथी, मारे सद्गुरू भाव कल्पवृक्ष दृष्टांतने सार्थक छे, सुरनरनी उपमाथी. दानगुग सर्वमा श्रेष्ट छे, अने तेथी धर्मोत्पत्ति छ, एम ज गाणं गुरूश्रीरूप जंगम तीर्थन प्राप्ति दुर्लभ छे, ग्रामानुग्राम वि. चरंता सद्गुरूनी प्राप्ति दुर्लभ छे, स्थावर तीर्थ पण भूत तीर्थकरादिनु स्मरण करावे छे, स्थावर तीर्थ उपर जेवी भाव भक्ति श्रद्धा होय छे तादृशी श्रद्धा भाव भक्ति जो सदगुरू
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