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कशी भने प्रदेशीनो संवाद.
करी ते वडे रसोइ पकावी. सर्वेए खाधु, पश्चात् सर्वे पोताने
घेर गया, आ दृष्टांतनी पेठे हे राजन् ! तुं पण मूर्ख छे. प्रदेशी-तमो निपुण, बहुविद् छो तो सभा समक्ष तुं मूर्ख छे _एम केम मने कह्यु ? ए केहेबुं तमने अनुचित छे. केशी-मनुष्य लोकमां हे राजन् केटली सभाओ छे ? प्रदेशी-राजसभा, गाथापति सभा, ब्राह्मण सभा, अने चोथी
रूषिसभा जाणवी. केशी-ते सभाओमां अपराध करे तेने दंड शो आपवो ? प्रदेशी-राजसभा, गाथापति सभा, अने ब्राह्मण सभामां अप
राध करनारने अनुक्रमे मोटी लघु शिक्षा करवामां आवे छे
अने ऋषिसभामां अपराध करनारने वाणीवडे तर्जना कराय छे. केशी-हे राजन् ! तुं जाणतो छतो मने केम उपालंभ आपे छे
कारण के तुं कुयुक्तिवडे वारंवार मारी प्रतिज्ञा सत्य छे एम कही वक्रपणुं धारण करे छे. माटे तुं अपराधी अमारो करेलो दंड युक्त छे (इति सप्तम प्रश्नोत्तरं).
" वृक्षनी शाखाओ कंपवा लांगी ते देखीने मूरि कहे छे. केशी-आ वृक्षनां पांदडां डाळीओ कोण हलावतुं हशे ? प्रदेशी-वायु हलावे छे, त्यां शो संदेह छे ? केशी-हे राजन् तुं वायु देखे छे ? प्रदेशी-ना किंतु वायु स्पर्श वडे प्रत्यक्ष देखाय छे पण चक्षुथी
देखातो नथी. कशी-वायु जेम त्वाय प्रत्यक्ष छे, तेम ज्ञान गुणवान् जीव मानस
प्रत्यक्ष छे, एम निश्चय जाण.
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