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परमात्मदर्शन. चोरतुं शरीर भारमा घटे ? वायुरूपी छे, शरीरी छे, आत्मा अरूपी, अशरीरी छे, अन्यत्र गतिमां गमनकर्ता आत्मा सूक्ष्म
शरीरी जाणवो. ( इति षष्ठं प्रश्नोत्तरं). . प्रदेशी-एक चोरने में ककडे ककडा करीने जोयो, त्वचादि सप्त
धातुओनुं निरीक्षण कर्यु मल मूत्र पण अवलोक्युं पण क्याय
जीव देखायो नहीं, माटे जीव देहनी ऐक्यता सिद्ध ठरी. केशी-हे राजन् वनोपजीवि जनवत् तुं मूढ छे. प्रदेशी-कोण ते वनोपजीवि. दृष्टान्त. केशी-जे काष्ट छेदन विक्रयथी स्वआजीविका निर्वहे छे, ते वनो
पजीवि पुरुषो कुहाडी करवतादि उपकरणो लेइ तथा पकाववानां अन्न लेइ वनमां गया, त्यां तेओए एक पुरुषने कर्जा के अमो काष्टार्थे आगळ जइशें, तुं आ सूकुं अरणिर्नु काष्ठ अने आकडान काष्ठ बेमांथी अनि उत्पन्न करी रसोइ पकाबजे, एम कही ते वनमां गया, पेलो पुरुष केटलोक वखत निद्राधीन थइ पश्चात् अरणीना काष्टना खंडोखंड करी अग्नि जोयो पण देखायो नहीं, तेम आकडाना लाकडाना खंडोखंड करी जोडे पण अभि दीठो नहीं, तेथी विलखो थयो, चरम महरे ते पुरुषो आव्या, अने आने कहेवा लाग्या केरसोइ तइयार थइ छे ? त्यारे मूढ पुरुषे कयु के अग्नि विना शीरीते रसोइ करूं ? त्यारे तेओए कहुं आ अरणि अने आकडाना लाकडामां अने अग्नि छे तेम कह्यु हतुं. तेनु केम? त्यारे तेने कह्यु के-बन्ने जातिना काष्ठना खंडोखंड करी जोयु पण अनि दीठो नहीं, त्यारे तेओए जाण्यु के, आ महा मूर्ख छे, पश्चात् तेओए अरणिकना काष्ठने नीचे मूकी, उपर सूकं छाणुं मकी आकड़ाना काष्ठथी मथन करी अग्नि उत्पन्न
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