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( २६४ )
को.
कारणता वर्तेछे. प्राध्यानता रागद्वेषंनी कर्मबंधनमांछे. माहनीय कर्मनी बंधस्थीति उत्कृष्टी सित्तेर कोडाकोडी सागरोपमनी जाणवी. मोहनीय कर्म मदिरा समान छे. जेम मदिरापानथी मत्त थएल मनुष्य अविवेकी बनी कृत्याकृत्य जाणी शकतो नथी. तेम मोहना उदयथी मूढ थएल मनुष्य कृत्याकृत्यने समजी शकतो नथी, भक्ष्याभक्ष्यमां प्रवर्तेछे, परभावमां मदोन्मत्तपणे मवर्तेछे अने virusयोगे आत्माने कर्मदलिकथी भारे करेछे. मोहोदयथी कोइनी हितशिक्षा श्रवणे सुणतो नथी. युवावस्थामां तो मोहोदयता अतिशय वर्तेछे. मोहनीय कर्मरूप बाजीगर - संसारी जीवोने पूतळांनी माफक नचावेछे अने जन्म, जरामरण, रोगशोक, तृषा, क्षुधा, छेदनभेदननां दुःख आपेछे, छतां जीवो मूढताथी संसारमां सार मानी रागदशामां मस्तान थइ वर्तेछे. अहो केटली अज्ञानता. क्षणिक सुखमां चिंतामणि रत्न समान मनुष्यभव जीव हारी जायछे अने पुनः पुनः संसारमां परिभ्रमण करेछे. कर्मराजा संसाररूप नगरमांथी जीवने जरा मात्र खसवा देतो नथी. अनंत शक्तिधारी आत्मा पण कर्म पिंजरमां रह्यो छे. क्यां पुद्गलनी शक्ति अने क्यां आत्मानी शक्ति तेनो तो हे भव्यो विचार करो -
प्रश्न - हे गुरु महाराज कर्म ए पुद्गल द्रव्य छे के पुद्गल द्रव्यना पर्यायछे.
उत्तर - कर्म एह पुद्गल परमाणु द्रव्यना पर्यायरूप स्कंधोछे अने ते आत्म प्रदेशांनी साथे क्षीरनीरनी पेठे परिणमे छे - पुद्गल द्रव्यनो स्कंध रूप पर्याय कर्म जाणबुं - कर्म जडछे. पण तेनाथी आमाना गुणो ढंकायछे तेथी आत्मा दुःख पामेछे. प्रश्न- अनादिकाळथी जे कर्म आत्मानी साथे लाग्युं छे तेनो शी
रीवे अंत आवे.
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