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परमात्मदर्शन. मात्र घटतुं नथी. गमनागमन परमाणुओर्नुछे. परमाणुओना संबंधथी थएला पुद्गल स्कंधो कर्मरूप परिणमी आत्माना प्रदेशोनी साथे लाग्याछे ते ज्यारे कर्म नाश थायछे. त्यारे मुक्तात्मा सिद्धबुद्ध कहेवायछे. मुक्तात्मानी सर्व शक्ति आत्माना असंख्य प्रदेशोनी व्यापीने रहीछे. मुक्तात्मानी शक्ति स्वद्रव्य बाहिर जती नथी. माटे आत्मस्वभावे सर्व शक्तिपणुं सदा बनी
रघुछे, सिद्ध अक्रिय होवाथी गमनागमननी क्रिया करे नहीं. प्रश्न-कोइ एम कहेछे के-इश्वर अवतार लेइ दैत्योनो नाश करेछे
ए पात खरी के खोटीउत्तर-कर्म रहीत निर्मल परमात्माने इश्वर कहेवामां आवेछे ते
परमात्मा अवतार ग्रहण करता नथी कारणके कर्मातीतने अवतर, आदि उपाधि नथी-पण कर्म सहित जे संसारी जीवछे
ते अवतार ग्रहण करेछे अने जन्म जरा मरणनां दुःख पामेछे. प्रश्न-त्यारे इश्वरनां लक्षण कहो. प्रत्युत्तर-जेनामां रागद्वेष सर्वथा होतो नथी तेने इश्वर कहेछे वळी
इश्वरना चार प्रकारछे-नाम इश्वर, स्थापना इश्वर, द्रव्य इश्वर, अने भावइश्वर इश्वर एवं गुणी वा निर्गुणीनुं इश्वर एवं नाम स्थापq ते नाम इश्वर, तथा कोइ पण वस्तुमा इश्वरनो आरोप करवो ते स्थापना इश्वर-जे जीवमा इश्वरपणुं आविर्भावे वर्ते नहीं ते द्रव्येश्वर-जे जीवमां रागद्वेषना क्षयथी इश्वरत्व आविर्भावे वर्तेछे ते भावेश्वर, ए चार भेद इश्वरनाछे. तेमांथी पूर्वोक्त जे इश्वर भावइश्वर तरीके कथायछे. ते इश्वरनुं संसारमा पुनजन्मकुं यतुं नथी. जीव ते पण इश्वर सत्ताएछे. इश्वरपणुं कर्मा च्छादितपणे होवाथी कर्म सहीत संसारी जीव संसारमा जन्म जरा मरण करेछे अने चतुरशीति लक्ष जीवयोनिमा पुनः पुनः परि
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