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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईश्वरः प्रश्न-कर्मनो क्षय थवाथी मुक्तिपद मळेछे त्यारे जेटला जीव कर्मनो - क्षय करेछे ते परमेश्वर कहेवाय के नहीं.. प्रत्युत्तर-हा, जेटला जीव, कर्मनो क्षय करेछे तेटला जीव परमा त्मा सिद्ध, बुद्ध, कहेवायछे, कर्मथकी सर्वथा प्रकारे रहीत थ. तेनुं नाम मोक्ष कहेवायछे.. प्रश्र-कर्म सहित जीव मोक्षमां जाय के नहीं ? । प्रत्युत्तर-कर्मसहित कोइ जीव मोक्षमां गयो नथी अने जशे पण नहीं. शिष्य-हे सद्गुरो-कोइ मति अज्ञानीयोए नवीन कल्पना उत्पन्न करी एम कहेछे के मुक्तिमां केटलांक वर्ष सुधी जीव रही पश्चात् संसारमा आवे छे. आ बाबत शुं समजवू. सद्गुरु-मुक्तिमां गया बाद जीव पुनरसंसारमा पाछो आवतो नथी. जीवने एक स्थानथी अन्यत्र लेइ जनार कर्मछे. अने ते कर्मनो संपूर्ण नाश थाय त्यारे मुक्ति स्थानमां जीव सिद्ध रूपे बीराजेछे. त्यांथी संसारमा आवी शकातुंज नथी. कारण के जीवनी साथे कर्म संबंध छतां गमनागमनछे. कर्मना अभावे मुक्ति स्थित मुक्तात्मानुगमनागमन थतुं नथी, श्री वीरप्रभु एम सर्वज्ञ दृष्टिथी वदेछे-चकलाचकलीनी पेठे मुक्तिना जीवो गमनागमन करता नथी-मुक्त जीवो अक्रियावंतछे. माटे ते गम नागमननी क्रिया करता नथी. प्रश्न-मुक्त आत्मामां सर्वशक्तिमानपणुं छेके नहीं, उत्तर-हा मुक्तात्मामा पोताना स्वरूपथी सर्व शक्तिपणुं रघुछे. पण पुद्गल द्रव्यनी शक्तिथी मुक्तात्मानी शक्ति भिन्नछे. आकाश द्रव्य अरूपीछे. आकाश जेम अनंत प्रदेशीछे अने ते जेम स्वस्वरूपे स्थिर वर्तेछे. तेम सिद्ध परमात्मा स्वस्वरूपे शुद्ध थया छता स्थिर वर्तेछे. स्थिरवर्तवाथी आत्मिक सर्व शक्तिपणुं जरा For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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