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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir wwanmarrrrrrrrrrAmAnand परमात्मदर्शन. वीर्य संयोगे गर्भमां जीवनुं उत्पन्न थर्बु अने प्रतिदिन वृद्धि पामवं इत्यादि सर्व कर्मनो प्रपंचछे गर्भमां पण जीव ओजाहार ग्रहेछे प्रश्न-गर्भमां जीव शावडे आहार ग्रहण करेछे. प्रत्युत्तर-आहार त्रण प्रकारनाछे. १ ओजाहार, २ लोमाहार, (रोमाहार ) कवलाहर-पूप एटले मालपूआने ज्यारे घीमां तळेछे त्यारे मालपुओ सर्वथी घीनी साये परिणमी जायछे. तेम गर्भमां जीव आहारने खेंची शरीररूपे परिणमावी शरीरनी वृद्धि करेछे. रोमथकी जे आहारने ग्रहण करवो ते रोमाहार कहेवायछे. हवानुं ग्रहण शरीरमा रोमथी थायछे, मुखथकी जे आहारनुं ग्रहण करवू. ते कवलाहार कहेवायछे, मनुष्य पशु पंखी जलचरने कवलाहार प्रत्यक्ष देखवामां आवे छे, एम गर्भमां ओजाहारनुं ग्रहण छे. प्रश्न-केटलाक भोळा लोको अज्ञानताथी एम मानेछे के-गर्भमाथी बाहिर नीकळ्या बाद-जीव शरीरमा प्रवेशेछे. अने पश्चात् छठा दीवसनी रात्रीए सरस्वति बाळक, भविष्य कपालमा लखेछे अने कहेछे के-छठीना लेख लख्या मटे नहीं तेनुं केम? प्रत्युत्तर-गर्भमांज जीव उत्पन्न थायछे. ते माटे प्रवचन सारोद्धार नवतत्त्व विगेरे ग्रंथो जोवा छठीना लेख सरस्वति लखेछे एम मानवू पण मिथ्या कल्पनामात्रछे-कर्म साथे बंध पामेलों जीव गर्भमां उत्पन्न थायछे, अने त्यां वृद्धि पामी नव मास थया बाद बाहिर नीकळेछे, कोइ गर्भमांज मरण पामेछे, इत्यादि सर्व कर्मनुं फळछे. कर्मनो सर्वथा प्रकारे क्षय थवाथी जन्मजरा मरणनी प्राप्ति थती नथी For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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