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परमात्मदर्शन.
(२५७ ) प्रत्यक्ष प्रमाण पण सिध्ध करेछे. ( भोगायतनं शरीरं ) सुख दुःख भोगववानुं स्थान शरीरछे, अने ते प्रमाणे दरेक जीव क्षणिक सुख तथा दुःख शरीरादिकथी भोगवेछे एम प्रत्यक्ष जोवामां आवेछे. तो ते सुख दुःखD कारण कर्म-पुण्य पापरूप आत्मानी साथे लाग्यु छे एम अनुमान थायछे. जेम कोइ शहेरपासे नदीछे तेमा मलनी रेल आवीछे. शहेरनी आसपासतो मेघ वरस्यो नथी. ते उपरथी एम अनुमान थायछे के-ज्यां त्यां अत्यंत मेघनी दृष्टि थवी जोइए. कारणके नदीमां रेल रूप कार्य देखायछे ते मेघनी दृष्टि विना होय नहीं अहीं तो मेघनी दृष्टि थइ.नथी. तेथी अनुमान थायछे के पर्वतमां दूरे खूब मेघ दृष्टि थइ हशे, तेम कर्मनो बाबतमां पण अनुमान थायछे के- भोग रोग सुख दुःख रूप कार्य फलतो प्रत्यक्ष देखवामां आवेछे माटे तेनुं कारण कर्म होवू जोइए. पुण्य पाप विना शाता तथा अशाता वेदनीय होय नहीं, ए अनुभव सिध्ध वातछे, वळी कहेछे के-जेम कोइ वृक्षना कोटरमा अग्नि सळगेछे अंदरना भागमा अग्नि बळेछे बाहिर देखाती नथी बाहिरतो फक्त धूम देखायछे. ते उपरथी अनुमान थायछे के
यत्रयत्र धूम स्तत्रतत्र वन्हिः ___ ज्या ज्यां धूम होयछे त्या त्या अग्नि होयछे, वृक्ष अंदरथी धूम बहिर निकळतो देखायछे माटे वृक्षना कोटरमा अनिछे एम अनुमान थी सिद्धि थायछे. तेम सुख,पूर्णेच्छा,भोग, रोग,शोक,वियोग,अंधत्व, बधिरत्व, दरिद्रत्वरूप,कार्यरूप, फल देखायछे माटे तेनुं कारण पुण्य पापरूप कर्म आत्मानी साथे लाग्युंछे एम सिद्ध थायछे, सर्व विद्वानो कर्मर्नु अस्तित्व स्विकारेछे तेम कर्म ग्रंथमां कर्मनुं स्वरूप विस्तास्थी ज्ञानीए वर्णव्युंछे तेमज कम्मपयडी, भगवतीसूत्र, पनवणासूत्र, विपाकसूत्र विगेरे सूत्रो तथा ग्रंथोथी कर्मनुं यथातथ्य स्वरूप सम
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