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( २५६ )
कर्म शी रीते अम्माने लागे के !
प्रदेशमय व्यक्ति द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाए अनादि अनंतछे, कोह पण कालमा आत्माना असंख्यात प्रदेश पैकी एक प्रदेश पण खरबानो नथी. आत्मा कहो के जीव ते त्रिकालमां पोताना रूपे सत्छे अने जे वस्तु सत्छे ते नित्यछे, आत्मा सत्छे माटे ते नित्माळे, प्रागभावाप्रतियोगित्वं नित्यत्वं
प्रागभावनुं जे अप्रतियोगी होयते नित्य जेटला कार्य रूप पदार्थो घट पट दंडादिकछे ते पर्यायार्थिक नयनी अपेक्षाए अनित्य Great - कारण घटपटादिक पदार्थों प्रागभावना प्रतियोगीले. आत्मा वा वेतन प्रागभावनो अप्रतियोगीछे माटे आत्मा नित्य Great - द्रव्यार्थिक नय द्रव्यत्व पणाने ग्रहेछे माटे द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षा आत्मा नित्यरूप जाणवो. संसारमां चार गतिमां परिभ्रमण करनारा अनंत आत्माओनुं द्रव्यपणुं त्रिकाल एक स्वरूपछे माटे ते द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाए नित्य जाणवा, हवे आत्मा अनादि अनंत नित्यछे, तेम सिध्ध कर्यु, ते आत्माने अनादिकाळथी कर्म लाग्यांछे ते वातनुं विवेचन करायछे. आत्मा अनादिकाळथी छे एम सर्वज्ञ श्री वीरमभुना वचनथी जाण्युं तेम कर्म पण अनादिकाळथी आत्माने लाग्छे, एम सर्वज्ञ श्री महावीरना वचनथी जणायुं, वीर प्रभु सर्वज्ञ अने रागद्वेषथी सर्वथा रहित हता माटे तेमना वचनो पूर्ण विश्वास भव्यजीवने थाय एमां कई आश्चर्य नथी, आप्तोक्तं वाक्यं प्रमाणं
श्री वीरप्रभु त्रिकाल सर्वज्ञानी आप्त हता. माटे तेमनुं वाक्य प्रमाणीभूत जाणवुं. कर्म अनादिकालथी जीवने लाग्यां एमां आगम प्रमाण पण सिध्ध ठर्यु. कोइ जीव राजा थायछे, कोइ रंकथाछे, कोइ जन्मी अंधा बधिर अवतरेछे कोइ - रोगीतो कोइ - भोगी इत्यादि सर्व पुण्यपाप फल प्रत्यक्ष देखवामां आवेछे माटे तेमा
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