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Senten
( २५५ )
नाश थायछे. वळी समजवानुं के इच्छा राग बिना होती नथी अने ज्यां राग होयछे त्यां सदाय द्वेष रह्योछे. रागी द्वेषी होयते कर्म सहीत. होय अने कर्म सहीत होय ते संसारी कहेवायछे, संसारी थवाथी इश्वरपणु नष्ट थयुं, कर्म कलंक नाश करी निरंजन निराकार पद पामवाथी इश्वरताछे- कर्म ए कंड़ बोलवा मात्र शब्द नथी, कर्म पुद्गल परमाणुओनो स्कंधथी बनेलुंछे. अने ते रूपीछे. कर्म लागवाथी आत्माना गुणो ढंकायाछे. हवे कहो के कर्मथी रहीत एवा इश्वरमां कर्म लगडवानी शक्ति मानवी ए केटली भूलनी वातछे, जे पोते कर्म रहीत थयाछे ते बीजाने केम कर्म लगाडे, कर्म लगाडवानी शक्ति इश्वरमां कल्पवी ते आकाश कुसुमवत् असत्य कल्पना मात्र छे. तेमज इश्वरनामां सुख दुःख भोगाववानी शक्ति मानवी ते पण कल्पना मात्र शश शृंगवत् वातछे.
कर्म पोतानी मेळे लाग्यां एम मानतां इश्वर कर्त्ता हर्ता नथी एम सिध्ध थयुं. हवे जीवने कर्म पोतानी मेंळे लाग्यां एम मानतां तर्क थशेके - कर्म लगाडया विना पोतानी मेळे शी रीते लाग्यां अने से क्यारथी लाग्यां तेनुं समाधान सूक्ष्म विचारथी थशेके-कर्म अनादि काळयी जीवने लाग्यांछे. जीव अनादि काळथीछे. जेनी आदि होय उत्पन्न थवापणे ते वस्तुनो अंत पण होयछे, जे वस्तुनो आदि अने अंतछे. ते अनित्य होयछे अने जे अनित्य होयछे ते कार्यछे अने जे कार्य पणे वस्तुछे ते विनाशी छे जेम घट उत्पन्न थयानी आदिछे तो तेनो अंत एटले नाश होयले, आत्मा कहो के चेतन वा जीव तेनी उत्पन्न थवानी आदि नथी अर्थात् आत्मा द्रव्यार्थिकनया पेक्षाए कोइनाथी उत्पन्न थयो नयी, अने जे वस्तु उत्पन्न थइ नथी ते अनादि कालयीछे, जेम आकाश. जे वस्तु अनादि काळथीछे तेनो अंत पण नथी, माटे जीव पण अनादि अनंतछे. आत्माना असंख्यात
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