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परमात्मदर्शन.
(२५) जीव बराबर शी रीते समजी शके, माटे जिनवचनमां जरा मात्र शंकानो अवकाश नथी. एम श्रद्धा करवी मोक्षार्थी जीवने घटेछे.
उपर प्रमाणे यथा मतिलेशथी व्यवहार निश्चयधर्म वा धर्म क्यां रहेछे ते दर्शाव्यु.
सप्तम विषय. हुं संसारमा जन्म मरण पामुंछु तेनु शुं कारण ? प्रत्युत्तर-कर्म, कर्म ए आत्मा नथी. आत्माथी भिन्न द्रव्यछे. आ
त्मानी साथे अनादिकालथी लाग्युंछे. जेनी आदिनथी तेनो
अनादिकाळ समजवोप्रश्न-कर्म आत्मानी साथे पोते पोतानी मेळे लाग्यांछे वा कोइए
लगाड्यांछे. उत्तर-कर्म पुद्गल स्कंध स्वरूपछे. जडछे. खरवा मिलवा रूपक्रिया
करेछे, अनादिकालथी आत्मानी अशुद्धि परिणतियोगे कर्म ग्रहायछे, परमात्मा आत्मानी साथे कर्म लगाडतो नथी. अर्थात् आत्मा पोते अशुद्ध भावथी कर्मने ग्रहेछे. अशुद्ध परिणति आत्माथी न्यारी नी तेथी आत्माज पोते कर्मनो कत्ता तथा भोक्ता कहेवायछे.
आत्मानी साथै अन्य कोइ कर्म लगाडतुं नथी. केटलाक जीवो इश्वर जीवनी साथे कर्म लगाडेछे एम मानेछे पण ते युक्तिहीन तथा सर्वज्ञनामत विरूद्ध वातछे. कारण के परमेश्वरने शुं प्रयोजन छे के ते जीवोनी साथे कर्म लगावे. अलबत रागद्वेष रहीत प्रभुने कंडपण प्रयोजन नथी के ते जीवोनी साथे कर्म लगाडी शके. वळी परमेश्वर कहो के परमात्मा सिद्ध, तेओए कर्मनो नाश कर्योछे, कर्मनो सर्वथा प्रकारे नाश यतां सिद्ध परमात्मा कहेवायछे, त्यारे
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