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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (२५) समजवानुं के, जे सिद्ध, परमेश्वर कर्मातीतछे अक्रियछे कोइपण म कारनी क्रिया करता नथी. ते बीजाने कर्म लगाडवानी क्रिया करे ते शशशृंगवत् असत्यवात ठरेछे. प्रश्न -त्यारे शुं सिध्ध परमात्मा कोइपण प्रकारनी क्रिया नथी करता. प्रत्युत्तर - ना, पौदगलिक कोइपण प्रकारनी क्रिया सिध्ध परमे श्वर करता नथी, पोताना शुध्यस्वभावे तेमनी सदाकाळ स्थितिछे. कर्मछे ते तो पौद्गलिकछे. पौगलिक भावथी भिन्न प्रभुयाने सिध्धले भिन्न पुद्गलद्रव्यनी क्रियांने प्रभु परमेश्वर करता नथी, प्रभुतो अरूपीछे एवा प्रभुथी कर्म जीवोने लगाaj त्रिकालमां पण बनेज नहीं. सप्तमविषय.' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिध्ध परमात्मा शुध स्वस्वभावे सक्रियछे एटले स्वभाव रमणतारूपवा षड्गुणगुणहानिवृध्धिरूपक्रियाना कर्त्ता सिध्यात्माछे. प्रश्न - सिध्ध परमेश्वर, जीवो कर्म सारां वा नठारां कर्म करेछे. तेनो इन्साफ आपेछे के नहीं. प्रत्युत्तर - सिध्ध परमात्मा वा जेने निरंजन निराकार ब्रह्म वा इश्वर कहे ते कर्म प्रपंचथी अत्यंत भिन्नछे. ने तेथी ते जीवोन कर्या कर्म प्रमाणे इन्साफ ( न्याय ) करी सुखदुःख आपता नथी. सारांशे जीवोए जे कर्म कर्या छे तदनुसारे सुख दुःख भोगाववा जीवोने सारा खोटा उंच पशु, पंखी, माणस, अंधादिना अवतार परमेश्वर आपता नथी. प्रश्न -त्यारे जीवो सागं वा खोटां कर्म करे. ते पोतानी मेळे शीं ते भोगवे. उत्तर- जे क्रियानो कर्त्ता जीव पोतेछे ते क्रियानुं फळ भोगवनार ण जीव पोते जाणवो. जेम कोई मनुष्य तालपुट विष भक्ष For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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