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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir amaAAAANAA परमानधन. हता. अध्यात्मज्ञानदृष्टि पण धरावता हता, जेमणे शास्त्रवार्ता समुवय आदि शतग्रंथ बनाव्या. ते महा पुरुष पण निश्चय दृष्टि हृदया धारण करी व्यवहार मार्गे चालवानी खास भलामण करेछे. झुं हालमा अध्यात्मनी किंचित् वात सांभळी व्यवहार मार्गथी विरुद्ध चाली डोळघालु अध्यात्मी बनी जनाराओ करतां विशेष ज्ञानी नहोता. एम केम कहेवाय ? ना तेओ महा ज्ञानी हता. माटे व्यवहार धर्म मार्गनुं यथाविधि यथाशक्ति आराधन करता इता भगवान् सर्वज्ञानी कहेछे के-. जइ जिणमयं पवज्जह, तामा ववहारनिथ्थए मुयह; धवहारनओ छछेए, तिथ्थुच्छेओ जओ भणिओ १ जो तुं जिनदर्शनने अंगीकार करे तो व्यवहार अने निश्चयने मूकीश नहीं. कारण के व्यवहार नयनो उच्छेद कर्याथी तीर्थनो उच्छेद कर्यो कहेवायछे, माटे महात्मा थवानी इच्छा होय तोममुनी शिक्षा धारवी. मानवी, केटलाक ज्ञाननी आकांक्षा विना अंध श्रद्धावाननी पेठे क्रिया करेछे. ते क्रिया जड जाणवी तेमनोधर्मव्यवहार फोनोग्राफवत् जाणवो. ____कोइ एम कहेशे के बराबर वस्तुनुं स्वरूप समजीने अमे क्रिया फरीशुं-ज्यां सुधी ज्ञान नथी त्यां सुधी क्रिया शाकामनी ? प्रत्युत्तरमा समजवायूँ-एम बोलवामां पण समजवानी घणी तारतम्यता समाइछे. प्रथम विकल्प थशे के कया ज्ञाननी प्राप्तिथी क्रिया करवी. मतिश्रुतज्ञाननी प्राप्तिथी वा केवलज्ञाननी प्राप्तिथी. ___ मतिश्रुतज्ञान थया बाद क्रिया करवी एम कहेतां पण विचारवानु के-गणधरोना जेवू मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, तेवू ज्ञान हालना बखतमा नथी. त्यारे कहो के चउदपूर्वी वा दशपूर्वधारी जेवं मति झान ते, ज्ञान पण हालना वखतमा नथी त्यारे हालमा मनिशान For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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