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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. ( २४७) करनारा मत कदाग्रही जीवो - व्यवहार अने निश्चयनयना ज्ञान विना वस्तु स्वरूप ओळखी शकता नथी. अने तेथी कर्तव्य कार्य सन्मुख थता नथी. सातनयोना ज्ञान बिना जगत्मां मतोनी उत्पत्ति थइछे, परस्परनयोनी निरपेक्षताए वस्तु स्वरूप यथार्थ कथातुं नथी, श्री यशोविजयजी उपाध्याय कछे के एके कनयना थी मतोत्पत्ति. श्लोकः बौद्धाना मृजुसूत्रतो मतमभू देदांतिनांसंग्रहात् ॥ सांख्यानां ततएव नैगमनयाद योगश्ववैशेषिकः ॥ शब्दब्रह्मविदोपि शब्दनयतः सर्वैर्नयैगुंफिता ॥ जैनदृष्टिरितीद सारतरता प्रत्यक्षमुवीक्षते ॥ १॥ भावार्थ - रुजुसूत्रनयथी बौधमत प्रगटयो, अने संग्रहनयथी वेदांतिनो मत प्रगटयो. तथा सांख्यमत पण नैगमनयथी तथा योग मत अने वैशेषिक मत पण ते नयथी प्रगटयो शब्दनयथी मीमांसक दर्शन उत्पन्न थयुं, अने जैन दर्शन एटले स्याद्वाद दर्शन तो सर्वनयथी गुंफितछे. माटे अनेकांत जैन दर्शनमां सारमां सारपणुं सदा प्रत्यक्षपणे देखीए छीए - जैन सर्व दर्शनीछे. अने बीजां दर्शन से जैनना एकएक अंशछे. श्री. आनंदघनजी महाराज कहेछे के.. जिनवरमां सघळां दर्शनछे, दर्शने जिनवर भजनारे: सागरमां मघळी तटिनी सही, तटीनीमां सागर भजनारे. षडदर्शन जिन अंग भणीजे. जिनदर्शमां सर्व दर्शनछे माटे अन्य दर्शन जिनेश्वर दर्शन अंगभूतछे. अने एकेका दर्शनमां सर्वाशे सप्तनय परिपूर्ण जैन दर्शननी For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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