SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. (२४५) आविर्भाव तेनी अपेक्षाए शुद्धधर्मनी आत्मामा उत्पत्ति जाणवी. सत पणुं तो प्रथम पण विद्यमान हतुं. हवे ते उपरथी स्पष्ट समजाशे के सत्स्वरूप आत्मिक धर्म द्रव्यार्थिकनयनी अपेक्षाए सदात्रिकाल सत्पणे जाणवो. तिरोभावे ढंकाएलो धर्म आविर्भावनी अपेक्षाए मगटपणे वर्तातो नथी माटे असत् अने तिरोभावनो नाश थतां आविर्भावपणे प्रकाशतां सत्स्वरूप जाणवो. ___ आविर्भावपणे आत्मिकशुद्धधर्म प्रगट थतां आत्मा परमात्म स्वरूप थइ जायछे अने ते अनंत सुखनो भोगी थायछे. पश्चात् कंइ कर्तव्य बाकी रहेतुं नथी. सिद्ध स्वरूप थतां पण आत्मामां पर्यायार्थिकनयनी अपेक्षाए पर्यायनो उत्पाद व्यय समये समये बन्या करे छे, सिद्धस्वरूपी आत्मामां अक्रियपणुं जाणवू. गमनागमन पण सिद्धात्माने नथी. रागद्वेषरूप मलनो सर्वथा क्षय थवाथी सदाकाल स्वस्वभाव रमगतागुण प्रगटपणे वर्तेछे, ज्ञानावरणीय अने दर्शना वरणीय कर्मनो सर्वथा समूलतः क्षय थवाथी अनंत ज्ञान अने अनंत दर्शन आत्मामां प्रगटपणे प्रकाशेछे एम अष्टकर्म क्षयथी अष्टगुण आदि अनंत गुण आत्मामां आविर्भावताए प्रगटेछे. . एम अनंत धर्ममय आत्मा जाणवो, सत्य धर्म आत्मामा रहेछे, शुध्ध आत्मिक धर्म प्रगटाववाना हेतुओने व्यवहार धर्म कथापछे, माटे व्यवहार धर्म अने निश्चय धर्म ए बेनुं अवलंबन करवू. श्री सिद्धसेनाचार्य कहेछे के श्लोक. निश्चयव्यवहारौ द्रौ, सूर्यचंद्रमसाविव ॥ इहामुत्र दिवारात्रौ, सदोद्योताय जाग्रतः ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy