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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमान ( २३ ) पूजन करे ते केम लाभने माटे न होय. अलबत प्रभुनी आज्ञाए वर्तते श्रावक तथा साधुने लाभकारी छे. आज्ञा ए धर्म नामाको श्री आनंदघनजी महाराज पण नवमा सुविधिनाथना स्तवम प्रभुनी प्रतिमानुं पूजन करवुं एम उपदेशेछे, माटे जितेश्वर वीतरा गनी स्थापना रूप प्रतिमानी बहुमानता, रोवना, पूजा, अवश्य करवी. जोइए. एक सामान्य उत्तम गुणवंतनी छबी जोइते केटलो आनंद थायछे. त्यारे ऋण जगत्ना पदार्थने जाणनार सर्वज्ञ अतिशय उप मारी तीर्थकरनी प्रतिमाने देखी जीवने आनंद थाय बहुमानता प्रगटे, तेमां शुं कहेबुं - निमित्त कारणरूप देव तथा तेमनी प्रतिमानुं अवलंबन भव्यजीवोने करवा लायकछे. प्रभुनी प्रतिमा संबंधी घणं. विवेचन करवानुं धार्यु किंतु ग्रंथ गौरवना भयथी संक्षेपमा प्रसंगे वर्णन करें. शिष्य- हे सुगुरो ! आपे कृपा करी निमित्त कारण कोण अने तेनुं स्वरूप समजाव्यं हवे कृपा करी अपेक्षा कारण कोणछे समजावशो सुगुरु-जे कारण कार्यथी भिन्न छे अने जे कारण माटे कर्ताले म यास करवो पडतो नथी, अने कार्यनी सिद्धियां निश्चयश्री ते जोइए. अने जे बीजा कार्योंमां पण कारणछे. तेने अपेक्षा कारण कहे छे. यथा पृथ्वी, आकाश, काल, ए विना घटादिक कार्यनी निष्पति थती नथी. भूमी, आकाश, काल, जेम घटनी निष्पत्ति प्रति कारणले तेम अन्य कार्योंना प्रति पण कारण छे. कर्त्ता जेम उपादान तथा निमित्त कारणनो व्यापार करेछे. तेम एनो प्रवर्तन करतो नथी. ते अपेक्षा कारणतुं तच्चार्थादिक ग्रंथोमां कछे, For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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