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( २३ )
जिनप्रतिमा.
हिसावमा नथी माटे सर्वज्ञ प्रभुनी आज्ञानुसारे श्रावक मनी प्रतिमानुं पूजन करे. तेथी तेने आत्महित थायछे अने प्रभुकी आज्ञानो आराधक बनेछे, श्रावकतो आहारादिक माटे छकायना जीवनी हिंसा कर्या करेछे माटे ते हिंसाना आरंभथी दूर थयो नथी माटे श्रावक प्रभुनी प्रतिमानुं पूजन भक्ति करे तेमां तेने मोटो लाभ छे प्रभुनी प्रतिमाने मानेछे ते सम्यग्दृष्टि जाणवो. प्रभुनी प्रतिमा पूजतां श्रावकने हिंसाना परिणाम नथी - जीवोने मारवानी बुद्धि श्रावकने नथी. तेथी तेने हिंसानो बंध थतो नथी अने तेथी शुभ भाव प्रगटतां पुण्य बंध अने शुभ भाव प्रगटतां परमानंद पदनी प्राप्ति थाछे, यद्यपि जो शुभ भावने पुण्य बंधनो हेतुछे. तोपण ते छतात्मगुणने स्थिर थवानो तथा नवा प्रगट करवानो हेतुछे. पुण्यानुबंधी पुण्यनो हेतुछे माटे प्रभुना उपर रागरूप शुभ भाव पण परंपराए मोक्ष प्राप्तिमां हेतुभूतछे. श्रीहरिभद्रसरिए पंचवस्तु ग्रंथमां कां छे केः
गाथा.
गुणरूड़ मूलं एयं, तेणं गुणवुट्टि देनअं भणिअं ॥ जह एलाइयुक्त्तो, पसथ्य रागेण गुणपत्तो ॥ १॥
माटे प्रभुनी प्रतिमा पूजतां शुभभाव पण उपादन कारणनी शुविमां लारणछे, माटे श्रावके प्रभुनी प्रतिमानुं पूजन करवुं जोइए. बळी सूत्रमां कांछे के ज्ञानीने आश्रवनां कारण पण सेवर रूपले असे अज्ञानीने संवरनां कारण पण आश्रव स्वरूपे परिणमे छे.
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बळी सर्व विरतिपदने धारण करनारा मुनीश्वर ज्यारे नदी उत ते पण ज्यारे लाभने माटे छे त्यारे श्रावक प्रभुनी प्रतिमानुं
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