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(१५)
जिनप्रतिमा. जन समवसरणमा समकितरत्नने पाम्या, बीजी पर्षद मध्ये जिन सेवनयी समकितनो लाभ यायछे. एपण स्थापना निक्षेपानो उपगारछे.
विचरता अरिहंत तथा तेमनी स्थापना ए बे साधक जीवने निमित्त कारण छे पण उपादान नथी. अर्हन्ने वांदवानुं तथा अअर्हन्नी प्रतिमाने वांदवानुं फल सरखं जाणवू. कारण के बेमां पण भावनी मुख्यता अंतर्थी यातां फल थायछे.
वळी दरेक वस्तुना चार निक्षेपा श्रीअनुयोग द्वारमा वर्गव्या छे. नामनिक्षेपो, स्थापनानिक्षेपो, द्रव्यनिक्षेपो, अने भावनिक्षेप. ए चार निक्षेपामा आधना त्रण निक्षेपाते भावना कारण छे. उक्तंचभाष्ये.
गाथा. अहवा नाम ठवणा, दवाए भाव मंगलंगाए । पाएण भाव मंगलं, परिणाम निमित्त भावाओ ॥१॥
माटे आयना त्रण निक्षेपा कारणछे. ए त्रण निक्षेपा विना भाव निक्षेपो थाय नहीं. अने नाम तथा स्थापना एवे निक्षेपा उपकारी कह्याछे. चोवीस तीर्थकरना नाम ए नाम निक्षेपोछे. तेमज नमो अरिहंताणं आ अरिहंत भगवान्नो नाम निक्षेपोछे. अर्हन्नी मूर्ति ए स्थापना निक्षेपछे, ज्यारे नमो अरिहंताणं ए नाम निक्षेपो कबुल करीए छीए अने ते जेम आत्मा प्रतिनिमित्त कारणछे तेम अरिहंतनी प्रतिमा पण आत्मा प्रति निमित्त कारणछे. नाम निक्षेपाथी जेटलो फायदोछे तेटलोज स्थापना निक्षेपाथी फायदो छे. नमो अरिहंताणं ए नाम निक्षेपाथी अरिहंतना गुणोनुं स्मरण थायो मोलुंज अरिहंतनी प्रतिमाथी अरिहंतना गुणोनुं स्मरण थायछे, अरिहंत, सिख, आचार्य, उपाध्याय, साधु, ए पंच परमेष्ठिनां
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