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( १२ )
केशी अने प्रदेशीनो संवाद
विलय ना पामी होय तो जीव अन्यत्र जात, तो तेनो नीकळवानो मार्ग पण थलो जणात, तेना जीवने नीकळवाना मार्गना अभावे मारी प्रतिज्ञा सत्य छे.
केशी - हे राजन् कश्चित् दुंदुभिवादक भूमीगृह (भोयरा ) मां प्रवेशे अने पश्चात् भोंयरानुं मुख बंध करे, जरा पण छिद्र रहेवा दे नहीं, त्यां दुंदुभि बगाडे तो तेनो शब्द बाहिरना लोको सांभळे के नहीं ?
प्रदेशी - बाहिरना लोकोथी शब्द संभळाय.
केशी - ए दुंदुभिना शब्दने निस्सरवानो क्यांय मार्ग जणाय छे ? प्रदेशी - कोई स्थाने जणातो नथी.
केशी - श्रोत्री ग्रहण थाय एवां शब्द पुदगलोने निःसरवानो मार्ग जातो नथी तो आकाशनी इव अरुपी आत्मानुं निर्गमनद्वार कथंरीत्या पामी शकाय ? गमे त्यां थइ आत्मा अरुपी माटे नीकळी शके छे. ते स्थूळदृष्टिथी अवलोकाय नहीं. इति तृतीय प्रश्नोत्तर.
प्रदेशी - हे भगवन् ! आपनी बुद्धिनी युक्तिथी ए बात साधी पण निश्चयसाध्य यती नथी. चोरना कलेवरमां कमीयो उत्पन्न यया ते जीवो छिद्रवाळी कुंभीना कया द्वारथी प्रवेश्या ? चोरने कंइ छिद्र नहोतां तेथी प्रतिज्ञा करूं छं के विकारवा चोरनुं शरीर तद्रूपता ने पाम्युं माटे मारी प्रतिज्ञा सत्यज छे. केशी - हे राजन् भृशंवन्हितप्तायोगोलकमां वन्दि प्रवेश छे के नही ? प्रदेशी - अयोगोलकमां वन्हि प्रवेशे छे.
- केशी- त्यां छिद्रना अभावे अयोगोलकमां वन्हि प्रवेशनी उपलब्धि छे तद्वत् जीव पण द्वार बिना पेसतो छतो. केम अश्रद्धेयक
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