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परमात्मदर्शन. कर्य होय अने अलंकार वस्त्रोथी शरीर अलंकयु होय ते वखते चंडाल आवीने कहे के स्वामिन मारा विष्टाना घरमा क्षणवार
आवी बेसो. एम कहे त्यारे तेनुं वचन तुं स्वीकारे के नहीं ? प्रदेशी-त्यां जq तो दूर रवू पण तेनो संबंध पण हुं करुं नहीं ? केशी-देवताओ निर्मल पवित्र वैक्रियशरीर धारण करी भत्यंतसुख भोगवे छे, मनुष्यो सात धातुथी निष्पन औदारिक शरीरने धारण करनारा छे, मनुष्य लोकनो गंध पंचशत योजन उर्ध्व उछळे छे, मरक्यादि अभावे चतुःशत योजन
दुर्गध प्रसरे छे. यतः चत्तारिपंच जोयण सयाई। गंधोय मणुय लोयस्स॥ उ8 वचइ जेणं । नहु देवा तेण आवंति ॥ १॥ संकंति दिवपेमा । विसय पसत्ता समत्तकत्तव्वा ।। अणहीण मणुअकज्जा। नरभवमसुदंन इंति सुरा॥१॥
इत्यादि विचारी जोतां तारी पितामहीनुं आवागमन असंभवित छे, मनुष्यभव संबंधी मोहना अभावे अने दुर्गंधिस्थान
पणाथी तेर्नु आवागमन थतुं नथी. प्रदेशी-मारी पितामही- अनागम हेतु तमोए बुद्धिथी सिद्ध कर्यु किंतु में जीव देहनी औक्यता घणी युक्तिथी साधी छे. माटे मारो पक्ष सत्य छ, में एक जीवता चोरने निःछिद्र कोठीमां घाली उपर ढांकणुं दीg. पुनर् मृत्तिकादि द्रव्योथ। लिंपी. केटलाक दिन पश्चात् ते उघाडी मृत चोर देख्यो, किंतु तेना जीवने निस्सरवानो निर्गमन मार्ग कोइए देख्यो नहीं, त्यारे में जाण्युं आनी चैतन्य शक्ति आ देहमां लय पामी अने जो
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