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केशी भने प्रदेवीमो संवाद जबाप नरकमांथी आवी मारा पिताए केम कह्यो नही ? माटे एवा व्यतिकरना अभाव हुँ एम स्वीकारुं छं के जीव देहनुं
क्य छे, कोइनुं पण परलोकगमन नथी. केशी गणधर-हे राजन् ! जो कोइ पुरुष तारी राणीने भोगवे
अने ते ते जाण्यु तो तुं तेने कोइक दंड आपे वा नहीं ? प्रदेशी-तेने हुं घणी विडंबनाओ करी मारूं. केशी०-ते पुरुष जो एम कहे के मने क्षणवार मूको तो हुं मारा
कुटुंबने शिक्षा आपी आयु के हुं अकृत्य करवाथी अत्यंत दुःखी थयो छ माटे तमारे कोइए अकृत्य करवू नहीं तो तुं तेनु वचन अंगीकार करे ? प्र०-कदी तेनुं वचन मानी छोडं नहीं. केशी०-त्यारे ए प्रमाजे तमारा पितामह पण नरय. आवी __ शके नहीं, ए प्रथम प्रश्नोत्तर. प्रदेशी-मारा पितामह कदापि आवी शके नहीं तेथी मारी प्रतिज्ञा
असत्य ठरती नथी; मारी पितामही तमारा शाशननी अनुरागिणी हती ने धर्म कर्ममां सदा आसक्त हती तो ते तमारी युक्तिए देवलोकमां गइ तेनो मारा उपर अत्यंत स्नेह हतो तो तेणीए अत्रे आवीने केम प्रतिबोध कर्यो नहीं! अरे पौत्र तुं धर्म आचर, हुं धर्म प्रसादथी स्वर्गमा गइ छु, अने तारा पितामहे तो पापना संचपथी नरक गति पामी एम तेणीए केम कह्यु नहीं, तेने तो अहीं आवतां कोइ अटकावी शकतुं नथी, तो तेना व्यतिकरना अभावे मारी प्रतिज्ञा सत्यज छे.
देहथी जीव भिन्न नथी. एतादृशी प्रतिज्ञा मम सत्या. केशीगणधर-ज्यारे तें स्नान करी सुगंधिद्रव्यतुं शरीरे विलेपन
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