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( २१६ )
चतुर्थ विषय विचार,
वाणीथी उत्तर आपे ते आहारक शरीरमां आत्माना प्रदेशोना होयतो समजी शकाय ते विना उत्तरनो अर्थ शी रीते समजे अने उत्तर अमुक प्रकारनो छे ते कोण धारण करी शके-माटे अवश्य आहारक शरीरम् ! आत्माना प्रदेशो मानवाज जोइए. श्री तीर्थंकर भगवाने जे वात कही छे. ते सत्यज छे-अनंतज्ञानी सर्व पदार्थनुं बराबर स्वरूप जाणेछे. सुगुरु-ज्यारे चउदपूर्वीए आहारक शरीर अत्रथी बनावी महाविदेह क्षेत्रमां मोकल्युं त्यारे - बे शरीर थयां एकतो चउदपूर्वी नुं सात धातुयी बनेलु औदारिक शरीर अने बीजुं महाविदेह क्षेत्र मोकलेलं आहारक शरीर.
वे बने शरीरमां आत्माना प्रदेशो खरा के नहीं
शिष्य हा गुरुजी बने शरीरमां आत्माना प्रदेशो छे. औदारिक शरीरथी तो चंद्र पूर्वी व्याख्यान वांवेछे. ते समज त्यां पण ज्ञान छे. नहीं तो व्याख्यान शी रीते बंचाय. वळी समजनुं के - यत्र यत्रज्ञानं तत्र तत्र आत्म प्रदेशाः ज्यां ज्यां ज्ञाननो सदुभाव छे त्यां त्यां आत्माना प्रदेशी जाणवा. बन्ने शरीरमां जो आत्ममदेशो होय नही तो बने शरीरमां ज्ञान होय नहीं माटे बने शरीरमां ज्ञानथी आत्माना प्रदेशो छे एम नक्की यथार्थ सिद्ध स्पष्ट मालुम पडयुं.
सुशुरु - हवे ते बन्ने शरीरमां आत्ममदेशो छे एम सिद्ध थयुं. हवे समजो के एक प्रदेशी आत्मा होय तो बन्ने शरीरमां ज्ञाननो सद्भाव शी रीते होय, एक प्रदेश जो आत्मानो होत तो एवो बनाव बने नहीं. अने लब्धिथी बीजां शरीर धारण करवामां aist आवे. वैक्रिय शरीर पण धारण करी शकाय नहीं. आत्माना असंख्य प्रदेशो मान्या सिवाय बन्ने शरीरमां जाणवा
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