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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शने. ( २१७ ) पणुं घटे नहीं. एम पण सिद्ध थयुं. चउदपूर्वीना आहारक शरीना दृष्टांतथी बने शरीरमां आत्मप्रदेशो असंख्याता ले एम सिद्ध युं अने एक प्रदेशआत्मानो मानवामां बाध आवेछे से पण सिद्ध कर्यु. युक्त अने युंजान योगियो पण अनेक शरीर धारण करे छे तेमां पण आत्माना असंख्य प्रदेश जाणवा. तीर्थकर महाराजे लोकाकाश प्रमाण आत्माना प्रदेशो काले ते वात पण सिद्ध ठरी, अने ते सिद्धले. हवे आत्माना प्रदेश संबंधी वर्णन करेल. आत्माना एकेक प्रदेशे अनंता पर्याय रह्याछे, ज्ञान पण प्रति प्रदेशे अनंतु सदाका ल शाश्वत समये समये वर्तेछे. प्रश्न - आत्माना दरेक प्रदेशे जुदु जुदु अनंतज्ञान छे एम मानीए तो एक प्रदेश जुद जाणवारूप कार्य करे. त्यारे आत्मानो कंइक जुद जाणवारुप कार्य करे. त्रीजो प्रदेश वळी कंह जुद्द जाणे. त्यारे एक जाणनार आत्मा रह्यो नहीं. छे उत्तर - जो के आत्माना प्रत्येक प्रदेशे अनंतज्ञान सत्ताभावे तो पण असंख्यात प्रदेशो मळी एक उपयोग वर्तेछे, पण प्रत्येक प्रदेशनो जुदो जुो उपयोग वर्ततो नथी ते कंइ बाथ आवतो नथी. असंख्य प्रदेशो मळी एक आत्मा कहेवायछ, माटे आत्माप नष्ट थतुं नयी. असंख्यप्रदेशो मळी एक समये निर्मल सिद्धात्माने एक उपयोग होयछे तेथी एकन आत्मा जाणवो. कोइक आचार्य युगपत् उपयोग मानेछे तथा चतत्पाठः गाथा. hs भांति जगवं, जाणइ पासइ केवलीनिअमा ॥ अन्ने एगंतरि, इच्छांत सुउव्वसेणं ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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