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परमात्मदर्शन.
( २१५ )
वादी ने केवलज्ञान थयुंछे के एम कही शके. ना. त्यारे असंख्यात प्रदेश आत्माना छे एम श्रद्धा कर. मति कल्पनाथी कंइ काम थतुं नथी. बळी हे शंकावादी सूक्ष्मदृष्टिी समज के ज्यां आत्माना प्रदेशोछे ते आत्माना प्रदेशोने व्यापीने ज्ञान अनंतघणुं रछे, प्रति प्रदेशे अनंतु ज्ञान रछे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान अने केवलज्ञान ए पंचमांनुं कोइपण ज्ञान आत्माना प्रदेशोने त्यागीने रहेतुं नवी. हवे आत्मानो असंख्यात प्रदेश न मानीए नहींतो एक मोटो विरोध आवेछे.
शिष्य - हे सद्गुरो आत्माना असंख्यात प्रदेशो मानीए नहीं तो मोटो शो विरोध आवेछे- ते कृपा करीने कहो. सद्गुरु- प्रथमतो केवली केवलीसमुद्घात करेछे. लोकाकाश प्रमाण आत्माना प्रदेशो कर्मनुं परिशाटन करवा विस्तारेछे. अने कर्म भोगवी छे ते वातनो विरोध आवेछे एक प्रदेश लोकाकाश प्रमाण विस्तारातो नथी तेथी शी रीते कर्मनुं परिशाटन करे नागो पलाळे शुं अने नीचोवे शुं एवी वात थइ, वळी बीजो विरोध ए आवेछे वे. - ज्यारे चतुर्दशपूर्वी शंका पुछवा माटे आहारकशरीर, लब्धिथी बनावी सीमंधर स्वामी पासे मोकलेछे त्यां जइ ते शरीर शंका पुच्छी तीर्थंकर सीमंधरस्वामी पासेथी उत्तर लेइ जलदी आवेछे. हवे कहो केपूर्वी बनावीने मोकलेलुं जे आहारक शरीर तेमां आमाना प्रदेशो खरा के नहि ? शिष्य - हा सद्गुरो ते आहारक शरीरमां आत्माना प्रदेशो होवा जोइए - जो ते आहारक शरीरमां आत्माना प्रदेशो न होयतो ज्ञान बिना भगवान्ने प्रश्नशी रीते पूछे. अने भगवान्
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