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(31 ) भात्मज्ञानी कर्मनो माश. व्यापीने रहेछे. कर्म संयुक्त संसारी जीव शरीरमां वस्योछे तेनी अपेक्षाए नानामां नानुं अंगुलना असंख्यातमा भागनुं शरीर धारण करेछे माटे अंगुल असंख्यातमा भाग जेवडो आत्मा कहेवायछे. अने केवली समुद्घात करता जीव लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशो विस्तारेछे माटे तदपेक्षाथी लोकप्रमाण आत्मा कहेवायछे. मोक्ष दशामां आत्मा अक्रिय थवाथी एकरुपे आत्मानी स्थीति रहेछे. शुद्धबुद्ध सिद्ध परमात्मामां पण उत्पाद व्यय ध्रौव्यता बनी रहेछे. प्रश्न-हे सद्गुरो! संसारावस्थामां शरीर प्रमाणे आत्माना प्रदे
शोनो संकोच विकोच थायछे त्यारे आत्माना प्रदेशो एक
बीजा प्रदेशथी जुदा पडता हशे के केमप्रत्युत्तर-तेवी स्थितिमा जो के आत्माना प्रदेशोनो संकोच वि
काश थायछे तोपण प्रत्येक प्रदेशो एक बीजा प्रदेशोनी साये नित्य संबंधे संबंधितछे. तेथी आत्माना प्रदेशो संकोच विकाशताने पामेछे तोपण एक बीजाथी जुदा पडता नथी. अमिना तणखाओनी पेठे सर्वथा भिन्न आत्माना प्रदेशो जो पडे तो असंख्यात प्रदेश मळीने एक आत्मा कहेवाय नहीं, अने आत्मापणुं नष्ट. थइ जाय. माटे अरूपी आत्माना प्रदेशो संकोचविकाशने संसारी अवस्थामां पामेछे तोपण तादात्म्य संबंधे संबंधीत होवाथी कोइ कालमा जूदा पड्या नयी अने पडशे पण नहीं. एवो प्रदेशोमा स्वभाव रह्योछे ते केवलीना
ज्ञानगम्यछे, अनुभवीओ ए वातने सम्यग् अनुभवे छे. प्रश्न-आत्माना असंख्यात प्रदेशने ठेकाणे एक प्रदेश मानीए तो
कंह हरकत आवे; उत्तर-हा हरकत आवेछे, श्री सर्व महाराजे आत्माना असंख्यात
प्रदेश दीग छे तेथी एक प्रदेश केम मानी शकाय, हे शंका
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