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परमात्मदर्शन. हवे ज्यारे ज्ञानावरणीयकर्मनो नाश थायछे त्यारे अनंतज्ञान उत्पन थायछे, दर्शनावरणीय कर्मनो सर्वथा नाश थवाथी अनंत दर्शन उत्पन्न थायछे. तथा शाता अने अशाता वेदनीयनो सर्वथा क्षय थवाथी अनंत अव्यावाध सुख उत्पन्न थायछे. मोहनीय कर्मनो सर्वथा क्षय थवाथी क्षायिक सम्यक्त्वनी तथा चारित्रनीमाप्ति थायछे, आयुष्य कर्मनो क्षय थवाथी आत्मा सादि अनंत स्थिति पामेछे. सारांश के-आयुष्य कर्मथी मुक्त थयेलो जीव सिद्धशिलानी उपर एक योजनना २४ चोवीस भाग करीए तेमांना त्रेवीस भाग मूकी चोवीसमा भागे एक समयमां सिद्धिस्थानमां जीव विराजेछे त्यां गयानी आदिछे पण त्यांथी पडवानुं नथी माटे अंत नथी. माटे सादि अनंतमा भांगे सिद्धमा मुक्त थएल मुक्तात्मा रहेछे. नामकर्मना नाशथी आत्मा पोतार्नु अरूपीपद आविर्भावे करेछे. गोत्रकर्मना नाशथी आत्मा अगुरु लघुगुण प्राप्त करेछे. अंतराय कर्मना नाशथी आत्मा सहज जे अनंतवीर्य तेने प्रगट करेछे एम ए आठ कर्मना नाशथी आत्मा अष्टगुणने प्रगट करेछे. अने परमात्मारूपे थायछे, पंचमीगति मोक्ष तेनी प्राप्ति कर्मना क्षयथीछे, एम जीवने चारे गतियोमा जवानां कारणो बताव्यां तेमज पंचमीगतिमां जवानो मार्ग याने उपाय बताव्यो. आत्मा जे वर्तन चलावशे तेवी गतिमां जशे. ए स्पष्ट वात छे. क्यांधी आव्योने क्यां जाइश ? ए संबंधी विचार लख्यो, हवे पंचम विषय संबंधी विचार लखेछे. पंचमविषय-मनुष्य जन्मनी साफल्यता शाथी-पंचप्रगति साध्य क
रवाथी मनुष्य जन्मनी साफल्यताथायछे. पुण्यपापक्षयान्मुक्तिः पुण्य अने पापना क्षयथी मुक्ति पद मळेछे शुभ कर्मने पुण्य कयेछे अने अशुभ कर्मने पाप कथेछे. शुभ वा अशुभ कर्म पौदगलिक छे. बे प्रकारना कमने पण आश्रय कहेछे. शुपुण्य
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