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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुनी क्रिया. भाश्रव कहेवाय छे अने पापने अशुभाश्रव कहेवाय छे. आत्माने अनादि कालथी आश्रय एटले कर्म लाग्युंछे, क्षीरनीरवत् आत्मा अने कर्मनो संबंध थयोछे. आत्माना असंख्याता प्रदेशो छे तेमां मति प्रदेशे अनंति कर्मनी वर्गणाआ लागीछे.. एकेक वर्गणा मध्ये अनंता पुद्गल परमाणुछे एम अनंता परमाणु जीव साथे लाग्याछे.. वर्णगंधरस अने स्पर्शमय परमाणुओनी वर्गणाओ जाणवी, जीवद्रव्यने लागेला परमाणुथकी अनंत गुणा परमाणुओ छूटाछे-कर्म सहित आत्मद्रव्य पण सत्ताथी सिद्ध परमात्मा समानछे. जीव द्रव्य नित्य पणछे अने अनित्य पणछे कछुछ के गाथा. निचानिच सरूवा, भावा सव्वेवि ताव तियलोए । उप्पाय विगम ठिइ धम्म, संगया ते पुणो एवं. ॥१॥ पुवभवपज्जएणं, विगमोइह भवगएण उप्पत्ती ॥ जीव दवेण ठिइ, निचा निच्चत्तमेवंतु ॥ २॥ नित्य अने अनित्य स्वरुपी सर्वे पदार्थो त्रिलोकमां वर्तता उत्पादव्यय अने ध्रौव्यता धर्ममय जाणवा, एक पदार्थमा उत्पादव्यय ध्रौव्यता केवी रीते थायछे ते घटावेछे- यथा जीवद्रव्यमा पूर्व भवना पर्यायनो विनाश अने आभवना पर्यायथी उत्पाद अने जीव द्रव्यत्वपणे धौव्यता एम ऋण धर्ममय जीव पदार्थ जाणवो, जीव द्रव्यमां गतिपर्यायथी उत्पाद व्यय ध्रौव्यता दर्शावी, आत्माना संसारावस्थामां अशुद्धपर्याय जाणवा वळी स्थूलदृष्टांते उत्पाद व्यय धौव्यता वर्णवेछे For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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