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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारमस्वरूपः दरेक माणस पोते करेला रागद्वेषना विचारोथी ज पोताने कर्मनी जाळमां घेरी लेछे, एम समजवानुंछे.-विचारमा समायला जोखमनो ख्याल नही होवाथी रागद्वेषना सर्वे विचारो मुखेथी आववा देछे. हवे एवा विचारोथी रागद्वेषना संस्कारो उत्पन्न थायछे. अने ते राग द्वेषना संस्कारो पोताना बनावनार उपर दबाण करी तेनी पासे फरीथी तेवा विचारो उत्पन्न करावेछे के जेनी अणसंमजु लोकोने खबर नहि होवाथी तेम थतुं अटकाववानी कोशेश करवाने बदले उलटुं वारंवार तेवाज विचारो उत्पन्न थवा देछे, अने तेनुं छेवट परिणाम एवं आवेशे के एकज विचार बे पांच वखत कीधाथी माणस पोते रागद्वेषना कबजामां आवी जायछे. अने ते पछी रागद्वेष, निंदा, शोक, मोह, अदेखाइ, बुराइ, चोरी, असत्य, व्यभिचार, हिंसा, कपट, विश्वासघातना विचारो माणसनी मरजी उपरांत तेनाथी थइ जायछे, एवी रीते राय द्वेष मोह मायाना विचारोना बंधनमां जीव पडेछे, कर्मनो कर्ता पोते अने जेमां बंधानार करोळीयाना जाळनी पेठे पोते ज छे, जे नठारा विचारो अजाण पणे फरी फरीथी करवाथी तेमां पोते बंधाइ जाय छे वळी रागद्वेष मोह, माया, मत्सर, रुप नारा विचारो थी छेवटे नठारं काम थइ जायछे के जेतुं कडवं फल भोगवती वेळाए ते दुःखी थायछे, दुःख खमती वखते तेने पोताना करेला कर्मथी छूटो थवानी इच्छा थायछे. अने फरीथी एवं नठारं काम नहीं थाय अने नठारो विचार नहीं आवे तेने माटे हवे ते साघचेत रहेवानी कोशेश करेछे. उत्पन्न करेली रागद्वेषनी टेवो घणी बलवान तथा अनादि कालथी होवाथी शरुआतमां तो मनुष्य निष्कक जायछे, एटले तेनी मरजी उपरांत रागद्वेष मोहना विचारो आवी जायछे, अथवा तो खराब काम थइ जायछे. पण लांबो वखत पो For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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