________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मदर्शन,
( १९७ )
fear in re स्पर्शने धारण करेछे शरीर पण पुत्रगलछे. माटे ते मारूं नहीं अने हुं तेनो नथी, पुद्गलनी भिन्न जातिछे. अने आत्मानी भिन्न जातिछे तेनी जाति भिन्न अने जेनो धर्म भिन्न जेनी वर्तना भिन्न ते एक कदी होय नहीं. हुं आत्मा पुद्गलमां त्यारे केम होंउं ? जो के संसारमां कर्मनायोगे हुं पुद्गलथी वस्यो छं तो पण पुद्गलथी निश्चय नयथी जोतां हुं न्यारो छु- ए त्रीजा विषयनो अल्प विचार फर्यो.
चतुर्थ विषय विचार - हुं क्यांथी आव्यो क्यां जाइश ? हुँ आत्मा क्यांथी एटले कया स्थानमांथी अत्र मनुष्य गतिमां आव्यो, अने हवे आ शरीरनो उत्सर्ग कर्या बाद क्यों जाइश. ते संबंधी स्थिरचितथी विचार करतां एम सिद्ध थायछे के पूर्व भवमां को पण में सारं कृत्य करेलुं. सिद्धान्तमां पण कथ्युंछे के-जे जीव सरल हृदयी होय, परोपकारी होय, दयालु होय, धर्मार्थी होय, कोइ जीवन घात करनार होय नहिं ते जीव मरीने मनुष्य थायछे. अर्थात् शुमभावनायुक्तजीव मरीने मनुष्य गति प्राप्त करेछे, तपचर्यावत, व्रती, परोपकारी, ब्रह्मचर्यादि गुण विशिष्ट जीव देवगति प्राप्त करेछे, पापी, मलिनारंभी, कृतघ्न्न, कपटी, हिंसा असत्यादिथी युक्त जीव नरक गति पामेछे, कपटवंत पापादि युक्त जीव तिर्यचनी गति प्राप्त करेछे. माटे ते उपरथी विचारतां सिध्ध थायछे के पूर्व भवमां के सारां कृत्य करेला के जेना योगे मनुष्य शरीर ग्रही तेमां वश्यो छु, जेने जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न थायछे ते पोतानो पूर्वभव यथातथ्य जाणेछे, जाति स्मरण मति ज्ञानतो भेदछे, संगतिराजा पूर्वे द्रुमकनो जीव हता. मिष्टान्न भक्षण लालची श्री आर्य सुहास्त आचार्यजीने साधु थवानी विनंति करी, गुरु महाराजे योग्य जाणी लाभनी खातर साधु वेष समय
,.
For Private And Personal Use Only