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( १८२ )
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बानुं क्यांथी होय ? माटे श्रावकवर्गने उद्देशीने पण लख्युं नथी. उपदेशनो अधिकार अधिकारी विना नथी. सामान्यतः श्रावक वांचे ते मांटे ना नथी. हवे मूळ विषय उपर आवीये, लौकिक तेम लोकोत्तर कुगुरुओ अज्ञानदशाथी पोते पोताना आत्माना बैरी थायछे. अने अन्य जनोना आत्माना पण वैरी बनेछे, पोते हिंसा करे, असत्य वदे, परवस्तु ग्रहे, अब्रह्ममां लीन होय, स्त्री परिग्रहना धारी होय अने अंतरथी विष्टामां राची रहेनार मूंडनी पेठे पौद्गलिक सुखमां अहर्निश अभिलाषी होय. एवा कुगुरुओ अधोगति भाक् थइ, अनेक प्रकारना क्लेशो पामेछे.
जेना मनमा त्याग तथा वैराग्य लेश मात्र पण होय नहीं, अनेत्री विषयोनी आशक्ति घणी होय अने हस्तिकर्णवत् वा वित्वत् जेतु मन चंचळताने भजतुं होय, एटले परवस्तुमां मन - मण करतुं होय एवा साधुनो वेष जो के धारण करेछे, तोपण ते साधुवेषने लजवेछे. जेम कोइ मनुष्य बख्तर वगेरे पहेरी युमां लडवा जाय अने ज्यारे लडाइ थाय त्यारे नासे. ते जेम वीरपणाने लजवेछे तेम अत्र पण जाणवुं दुःखगर्भितवैराग्य वा मोहगर्भित वैराग्यथी दीक्षा अंगीकार करी पश्चात् अंतर्दृष्टि विना बाह्यपौद्गलिक विषयोमां मन वर्ते, अने तेना योगे आसंध्यानने रौद्रध्याननो परिणामी बनी उपरथी साधु वेषना सद्भावे साधु कहावे, तो से अवश्य पोताना आत्माने ठगेछे, अर्थात् तेने राग द्वेषनी अशुद्ध परिणति ठगेछे.
वळी जे धर्मदानथी तथा धर्मोपदेश दानथी वा दीक्षा आपबाथ पोताना गुरु तरीके जे होय अने पोते शिष्य होय रोम छतां रीसना हेतुओनो संबंध पामी रीसथी गुरुनी साथै वर्ते गुरुनी निंदा करे वा तेमनां दूषणो शोधे- तेमनोउपकार भूली जड़ तेमनी आज्ञा
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