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परमात्मदर्शन.
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दवे साधु संबंधी कहेछे. 59 दुद्दा. सत्य धर्म समजे नहीं, दे उलटो उपदेश; धर्म मर्म समज्या विना, अंतरम व्हे क्लेश. १३१ स्त्रीविषयाशक्ति घणी, त्याग विराग न लेश; मन चंचल जेनुं सदा, लजवे साधु वेष. शिष्य थइने सथी, वर्ते गुरुनी साथ; आत्महित ते नहि करे, विनयी ले शिवपाथ. १३३ कपटी काळा कागडा, कुगुरु कर्मचंडालः संगकद | करवो नहीं, भवतस अरहट्ट माळ. १३४
तनो उपदेश अज्ञानी कुगुरूभ सत्य आपी शकता नथी. अने उलटा कर्म ग्रछे ते जणावेछे.
भावार्थ - आत्मानुं स्वरूप सम्यग् जाण्या विना जे गुरू एवं नाम धरावेछे, ते कुगुरू जाणवा, धर्मनो मर्म जरा मात्र समज्या विना आत्मा परमात्मानो उपदेश आपवा तैयार थइ जायछे, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, मोक्ष, इत्यादितुं किंचिदपि ज्ञान होय नहीं, तेम छतां उपदेश आपे तेवा कुगुरूओ म
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मां क्लेश पाछे, अने पोते पण बुडेछे, अने बीजाने पण बूडाडेछे, आ वचन लौकिक कुगुरू अने लोकोत्तर कुगुरूना उपदेशने उद्देशी कछे, सामान्यनीति शिक्षण हितशिक्षा तो परस्पर मनुष्यो एक बीजाने आपेछे, तेनुं आ ठेकाणे ग्रहण कर्यु नथी. फक्त धर्मना उपदेश माटे लखवाउँछे, धर्मनो उपदेश आपवाने साधुओने अधिकार छे, संसारमां राचीमाची रहेला श्रावकोने तो धर्मनो उपदेश आप