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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. ( १७७ ) भूली जाय छे, पुरुष लिंग प्राप्त थयुं ए कर्मना उदयथी छे, तेमां अहंता धारण करवी ते अज्ञानी जीवनुं लक्षण छे, पुरुष वा स्त्रीना अध्यासथी बंधातां आपणुं आत्मानुं शुद्ध स्वरुप भूलीएछीए, हुं अने मारुं ए अभिमानथी ऋण जगत्मा कोइ आत्मानंदानुभवी थयो नथी अने थवानो नथी माटे वस्तुतः प्रियधर्मसाधक भव्यात्माओ लिंग अध्यासथी केम परमां रंगावं जोइए ? अर्थात् कदी पण लिंगाध्यास मनमां स्फुरवा देवो नहीं, अने एमां जो रंगाशुं तो दुःख वडे दीन एटले गरीब अवस्था प्राप्त थशे एमा संशय नथी. कोइ मर्द पुरुषने चंपालाल, नपुंसक कहे तो त्वरित तेना मनभां आवशेके मने नपुंसक कहेनार कोण ? एम संकल्प थतां क्रोधनो आविभव थतां मुख तोवर जेवुं फुली जशे. बखते चंपालालने त्रण चार अपशब्दो पण संभळावे, परस्पर एक बीजानो अपकर्ष करवा बाकी राखे नहीं, ए लिंगाभिमाननुं फळ छे. माटे विवेकनयनाधिष्टाताओए परमात्मपद प्राप्यर्थ अन्तर्दृष्टि साधी एतादृश अभिमानने त्यजवो, ज्यां सुधी लिंगाध्यास छे त्यांसुधी जीव हुं परमात्मा छु एवी दृढ भावना धारण करवाना अभावे जन्म मरणनी उपाधि संचय संग्रहेछे. वर्ण, तेमज आश्रमभेदे जे आत्मिकशुद्धधर्मनो भेद मानेछे, ते शुद्ध शाश्वत आत्मधर्म प्राप्त करतो नथी, सत्यधर्म तेवा व्यवहारजडजनथी समजातो नथी. अने कदापि तेवा पुरुषनी आगळ कोइ सत्य धर्मनु दर्शावे तोपण कदाग्रहग्रस्त थवाथी वचनामृतो पण तेने विषवत् परिणमेछे, अने सत्य धर्म ते आत्मानो पोताना सहज स्वभावे सदाकाल पोतानाथी जरामात्र पण दूर नथी तेने अज्ञाना जीव विपरीत दृष्टिथी जाणी शकतो नथी. - जडमां आत्म धर्मना अभिनिवेशथी उलटा कर्म संग्रही तेना उदये अधोगति भजे छे, श्री For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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