SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यामां प्रवर्तवाथी थायछे. www.kobatirth.org परमात्मदर्शन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ( १७५ ) आत्मानुं स्वरुप दर्शावेछे. " जाति नहि हे आत्मकुं " - आत्माने जाति नथी एटले ब्राह्मण जाति, वणिक् जाति, कणबी, सोनार, लुवार. ढेड, चंडाळ, इत्यादिजाति आत्मानी स्वरुपत; विचारी जोतां बिलकुल जणाती नथी. जाति देहकुलने आश्रितछे, आत्मा अरूपी तेथी न्यारोछे. माटे जातिमान् आत्मा नथी. कोइ जात्याभिमानथी हुं ब्राह्ममण हुं हुं वणिक, हुं रजपुत छं, हुं कणबी छं, एम अज्ञानयोगे जाति अध्यास पोताना आत्मामांमानी लेछे ते आत्मपद प्राप्त करी शकतोनथी. वस्तुतः विचारी जोतां मालुम पडेछेके जगत् व्यवहारमां जाति एक संज्ञा मात्र छे, आत्मामां सदा ब्राह्मणत्व क्षत्रियत्वादि जाति कदी रहेती नथी अने रहेशे पण नहीं, व्यवहारमार्गे जातिनी कल्पना छे पण ते वस्तुतः सत्य नथी माटे जातिनो अध्यास आत्मामां धारण करवाथी बहिरात्मपदनी प्राप्तिनो वियोग थतो नथी. जेम आकाशमां कोइ जाति नथी. तेम आत्मामां पण कोइ जाति नथी अभिमानवाळा जडजीवो आत्मअनात्म विवेक शून्य बनी परमां अहंममत्वबुद्धिथी रागद्वेष परिणति भजी मानसिक अनेकशः संतापो अनुभवी आर्त रौद्रध्यान वश थइ अधोगति प्राप्त करेछे. “ जसजाति अभिमान " जेने जातिनुं अभिमान छे ते बाह्य पदार्थोंमां धर्म मानेछे, जातिना अभिमानथी लोको परस्पर एक बीजानी निंदा करेछे, एक बीजाने जाति अभिमानथी हलका गणेछे. जात्यभिमानी जीव जातिमां राची माची रहेछे, उंची जातिवाळो कहेवातो होय तो नीच जातिवाळाने हलको गणेछे. पोतानी जातिमां राग बंधाय छे, अने अन्य जातिमां द्वेष बंधाय छे. पोतानी जातिमां ज धर्मछे अन्य जातिमां धर्म रहेतो नथी एम दृढवासनाथी भवमां बंघाय 46
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy