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भास्मस्वरूप. .
त्मा पोते सुखनुं स्थानछे. आत्मा पोतानी मेळे ज्ञान गुणधी पोतार्नु स्वरूप जाणेछ, हुं आत्मा सदा सच्चिदानंद स्वरूपनो धारण करनारछ. हुं मायाथी न्यारोछ. सर्व उपाधियी हुँ भिमछु. मारूं पोतानुं स्वरूप रागद्वेष रहितछे तो हुँ केम तेनो एटले परपुदगलनो संग करूं ? हुँ अरूपी छु तो रूपीवस्तु ने केम पोतानी मार्नु? ९ विजातिथी न्यारोटु तो माराथी मिन विजातिय पुदगल द्रव्य तेने फेम पोतानुं मार्नु ? मारा शुद्ध स्वरूप हुँ र तो हुँ अखंड आनंदमयछु, विकला संकला रहित हुं हुं तो विकल्प संकल्पने हुँ पोताना केम मार्नु ? अने विकल्प संकल्प हुं कम करूं ? अने ज्यां मुधी विकल्प संकल्प करूं त्या सुधी सुखी केम या ? तेपज निर्विकल्प ए, मारूं स्वरूप पण शी रीते पामुं ? विकल्प संकल्प करवा ए मारा आत्मानो शुद्ध स्वभाव नथी तो हवे हुँ स्थिर असंख्यप्रदेशमय उपयोगी था ? अने गाढ निद्रानी पेठे सर्व माया जाळने भूली जाउं, तो मारो अनुभव आपो आप विचारता थाय अने एम निर्विकल्प दशामा रहेतां आत्मशक्ति मारी आविर्भावप्रकाशे, क्षायिकभावे, द्रढध्यान संततियोगे आत्म गुणो स्फुरायमान थाय, विकल्प संकल्प श्रेणि परंपरानाश पामतां सहज अनुभव सुखराशि प्रगटे, अने अनादिकाल संलम आधि व्याधि उपाधिरूप धूप नाश पामे. सारांश के-आधि व्याधि उपाधिनी दुःखोनुं मूल कारण कर्मनी प्रकृतियोछे. अने द्रव्य कर्मरूप प्रतियोनु आत्मानी साथे जे बंधावू ते रागद्वेष परिणति याज्यछे.
रागद्वेष. परिणतिनी नष्टता ज्ञान ध्यानथीछे, आत्मा स्वस्त्रभावमा रमण करतो अनंत भवोपार्जित कराशिने दूर करेछे अनुक्रमे सर्व कर्म प्रकृति विकृति समूलतः क्षय करी परमात्मपद मात्मविषे प्रगटाचेछे, आत्मज्ञानथी पताह सुखोत्पतिज्ञान क्रि
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