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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. (१५) मुनिवर्यना दास थइ रहे, एमनी आज्ञा मस्तके चढाववी. कदी एवा मुनिवरनी आज्ञानो लोप करवो नहीं, तेमनुं सदाकाल ध्यान स्मरण करवू, तेमनी वैयायच्च करवी. प्रश्न-गुरू अने मुनिमां आपना वोलवा प्रमाणे कंइ भेद स- मजाय छे तेनुं शुं कारण ? उत्तर-जेण उपदेश देइ सम्पक्त पमाडघु होय ते धमाचार्य गुरू जाणवा. ते मुनिराज छते पण धर्म पपाडवाथी धर्माचार्य गुरू मुनिरान जाणवा. अने ते विनाना उपरोक्त लक्षण सहित जे होय तेवा रजोहरण मुहपत्तिना धारक मुनिराज जाणवा. समकितदान दात. चथी बेमां एटलो भेद जाणवो. उपकारथी भेद जाणवो. हवे सर्व जीवने धर्मनी प्राप्ति केवा लक्षणथी थाय ते देखाडेछ, अत्र मुनि तेमन श्रावकनो भेद पाडया विना बनेने हितकारक आत्म धर्म जाणी वनेने उपदेश आपेले. रहीए आप स्वभावमां, लहीए तत्त्व स्वरूप ॥ आपोआप विचारतां, मिटे अनादि धूप ॥ १२६ ॥ जाति नहीं हे आत्मकुं, जस जाति अभिमान ॥ पामे नहि ते धर्मने । नकी मनमां जाण ॥ १२७ ॥ भावार्थ-मोक्ष पदपाप्त्यर्थम् अात्मस्वभावमा रमणता करवी जो आत्मस्वभावमा रमण करीए तो तत्व स्वरूप एटले परमात्म पद पामीए, वेष बदलो, देश बदलो, किंतु आत्मस्वभावमा रमणता विना मुक्ति नथी. परवस्तु संवरे यता अनेक प्रकारना विकल्प संकल्पो तेने मनथी दुर हावी केवल आत्मानुं ध्यान करवं. आ. For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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