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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (११) साधुनी किया. वायुना योगे वादळां दूर यतां जेम सूर्य किरणोथी प्रकाशेछे तेम आत्मारूपसूर्य कर्मरूपवादळांथी अवरायोछे तेथी सर्व वस्तुओ 'आत्माना ज्ञानमां ज्ञेयरूपे भासती नथी. पण मतिज्ञानने श्रुतज्ञानना 'योगे ध्यानरूप वायु वातां कर्मरूप वादळ आत्माथी दूर थायछे. त्यारे आत्मारूप सूर्य ज्ञानरूप किरणोथी लोकालोकने प्रकाशेछे. ध्यानपरंपराए आत्मोपयोगीपणुं मुनिराजने सतत बन्यु रहेछ, भावचारित्रनी प्राप्ति विना आत्मोपयोगता वर्तती नथी. द्रव्य चारित्रथी कर्म नाश यतुं नथी, चारित्र शुं छे ? ते जे जीवो. अज्ञानयोग समजता नथी, ते भाव चारित्रनो स्पर्श करी शकता नथी, भावचारित्र प्राप्ति प्रति रजोहरण मुहपत्ति साधुवेष दीक्षा आदि निमित्त कारणोछे, अने तेवी दीक्षा प्रत्येक तीर्थकरोए ग्रही भाव चारित्र प्रगटाव्युं, तेम अन्य भव्यात्माओए पण प्रभुना पगले चाली तेमनु अनुकरण करी भावचारित्र प्रगट करवू, ते भाव चारिवनी निरपेक्षताए बाह्याचारमा सरागदृष्टिथी मुंझाता एवा जीवो उपयोगनी शून्यताए संसाररूप समुद्रनो पार पामी शकता नथी. प्रश्न-भार चारित्र विना साधुवेष असमंजसछे तो ते केम ग्रहण करवो जोइए? उत्तर-रजोहरण मुहपत्तिथी युक्त माधुवेष अंगीकार करी ,जीव बाह्यग्रंथिनो त्याग करेछे ते आभ्यंतरग्रंथि नाश प्रति कारणछे. माटे दीक्षा अंगीकार करवाथी बाह्य उपाधि टळेछे.अने छकायना जीवोनी रक्षा थायछे, पंचमहावत पाळवायी आश्वना मार्गों नाश पामेछे. सर्वतीर्थकरभगवंतोए. एवी भागवती. दीक्षा अंगीकार करीछे. अने तद्वारा विकल्प संकला त्यागी आस्मध्यानमा प्रवर्ती परमात्मपद साध्युं, मारे भव्यात्माए. पण भागवती दीक्षा अंगीकार करवा प्रयत्न करतो. संसारमा For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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