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परमाग्मदर्शन, इत्यादि कथनथी कालिकानो भक्त थयो, त्यारे वळी नास्तिकवादी तेने मळ्यो तेणे कथु. भला मनुष्य तने धर्म धुताराओ छेतरेछे केमके जे वस्तु आपगी आंख देखाती नथी. ते वस्तुनी इच्छा राखवी ते व्यर्थ छ, कालिका तो पत्थरनी मूर्ति छे ते कर फल आपना समर्थ नथी इत्यादि कथनयी नास्तिक थाय इत्यादि अबस्था जे मनुष्यनी थायछे ते कदापि आत्म मुख पामी शकतो नथी. कारण के ते अज्ञानी अविवेकी अने श्रद्वा रहीतछे, तेथीभवभ्रमण कर्या करेछे.
बळी जे भव्यो उपादान कारणने समजता नथी अने निमित्त कारणतुं स्वरूप पण जाणता नथी, अमुक कार्य अने तेनुं कारण अमुक ते पण समजी शकता नथी. साधन अमुक अने साध्य अमुक ते पण समजी शकता नथी एवा अज्ञानी जीवोनु तत्वमा चित्त होतुं नथी.
द्रव्य अने भावथी चारित्रने समजता न होय. फक्त ओघदृष्टिथी बाह्याचारमा धर्म मानी प्रवर्ते, आत्मतत्त्वनो उपयोग होय नहीं तेवा जीवो भवनो पार पामी शके नहीं श्री यशोविनयजी उपाध्याय कहेछे के-.
ढाळ. ज्यां लगें आतम तत्त्वजें, लक्षण नवि जाण्यु; त्यां लगे गुणठाणुं भलं, किम आवे ताण्यु. आतम.१ .. ए प्रमाणे विचारतां आत्म तत्वावबोध विना क्रिया मुक्ति मार्गप्रतिकारणीभूत थती नथी. हुं क्रिया कोने माटे करुंछ, क्रियाथी भुं थायछे, क्रियानो कर्ता कोणछे ? एनी यथायोग्य समजण विना अनुपयोगताए परमात्मपदरूपसाध्यसंसिद्धि यह
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